मैं छोर बँधा
लोभ बँधा
मैं क्षोभ बँधा
काट बंध
मैं बहूँ स्वछंद
नित लहर संग
मैं तरल ब्रह्म
किताब
जादूगरनी है
मुझसे पहले
पढ़ लेती है
मुझे
किताब
चापलूस है
सुनाती हमेशा
पसंदीदा कहानी
मुझे
किताब
आँधी है
झकझोरती
गहरी नींद से
मुझे
किताब
माँ है
मरहम लगाकर
सुला देती
मुझे
किताब
केवल है
कोरी, निःशब्द
लिख रही
मुझे
एक ब्रम्ह-खोह है
जहाँ से स्वतः
प्रकट होती है
कविता
कला
कृति
संगीत
नहीं रचयिता
हम जरिया हैं
ब्रम्ह के
अंधियारे
सन्नाटे की
अभिव्यक्ति का
x
मैं नहीं
मन, बुद्धि या अहम्
चित्त भी
नहीं मैं
मैं नहीं
इन्द्रियाँ पाँच
पंचतत्व भी
नहीं मैं
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं
मैं नहीं
प्राण, पंच वायु
सप्त धातु या
पंच कोष भी
नहीं मैं
मैं नहीं
मुख या
मलद्वार
शरीर अवयव या
प्रजनेन्द्रिय भी
नहीं मैं
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं
मुझमें नहीं
राग, द्वेष,
लोभ या मोह
अहंकार व ईर्ष्या भी
नहीं मुझमें
मुझमें नहीं
धर्म, अर्थ
काम व मोक्ष भी
नहीं मुझमें
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं
मुझमें नहीं
पुण्य,पाप
सुख या दुःख
मन्त्र, तीर्थ
वेद व यज्ञ भी
नहीं मैं
मैं नहीं
भोजन
भोज्य या
भोक्ता भी
नहीं मैं
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं
मुझमें नहीं
मृत्यु भय, संदेह
जाति भेद भी
नहीं मुझमें
मेरा नहीं
पिता, माता
या जन्म
बंधु, मित्र
गुरु व शिष्य भी
नहीं मेरे
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं
शिव ही हूँ मैं
मैं हूँ
निः विकल्प
निः आकर
सर्वव्यापी
सर्वभूत
सर्वत्र
सर्व इन्द्रिय स्थित
हूँ मैं
मैं हूँ
मुक्त
मुक्ति व
बंधन से
अमेय
हूँ मैं
मैं हूँ
चिर आनंद
शिव हूँ मैं शिव ही हूँ मैं
ऐसी मान्यता है कि आदि शंकराचार्य जी ने आठ वर्ष की बाल्यावस्था अपना परिचय में इन छः श्लोकों द्वारा दिया था। यह रचना इतनी स्वप्रवाहित एवं संगीतमय है, मानो एक बालक के कंठ से स्वयं परमात्मा ने इन्हें अभिव्यक्त किया हो। प्रस्तुत है :
मनो बुद्ध्यहंकारचित्तानि नाहम्न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रेन च व्योम भूमिर् न तेजॊ न वायु:चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु:न वा सप्तधातुर् न वा पञ्चकोश:न वाक्पाणिपादौ न चोपस्थपायूचिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौमदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष:चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम्न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा: न यज्ञा:अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ताचिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥न मृत्युर् न शंका न मे जातिभेद:पिता नैव मे नैव माता न जन्मन बन्धुर् न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य:चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊविभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्न चासंगतं नैव मुक्तिर् न मेय:चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवॊऽहम् ॥
कुछ अपने
कुछ अपनाए हुए
बीते क्षणों
के घाव लिए
घायल
घूम रहे हैं
हम सब
कर्म के
शर्म के
धर्म के
मर्म के
इन घावों
के आदी
हो गए हैं
हम सब
व्हाट्सएप
और टीवी से
हर रोज़
इन घावों को
कुरेदते हैं
हम सब
इन घावों
और उनमें जमा
घृणा-पीब को
कोई शत्रु
प्रेम-मरहम से
छरछरा न सके
इसलिए सतर्क
रहते हैं
हम सब
सारे नाम
धीमे-धीमे
रखता रहा
घर के बाहर
प्रेम
धीमे-धीमे
बढ़ता रहा
घर के भीतर
नाम
ढक लेते हैं
पहचान को
अँधेरे की तरह
साफ़ है सब
रोशनी है अब
मैं
ढूंढता रहा
खुद को
शब्दों,
विचारों,
स्थितियों,
परिस्थितियों,
आवाजों,
रोशनियों,
में
वह
इंतजार करता रहा
मेरा
इन सभी के
बीच बैठे
इन सभी को
समाए हुए
शून्य,
शान्त,
अंधेरे,
अंतराल
में
मैं
दौड़ता रहा
खुद को
पाने को
वह
खड़ा रहा
यहीं
अभी
हमेशा से
मेरे लिए
अब
मैं
थम गया हूँ
और
उसने
मुझे
थाम लिया है
अब
मैं नहीं
वह नहीं
बस
शून्य
शान्त
अंधेरा
सूक्ष्म
विस्तृत
अंतराल है
वह विवादित ढांचा
जिसे संविधान कहते हैं
गिराया जा रहा है
रोज़ ब रोज़
पर किसी साजिश के
सबूत अपर्याप्त हैं
वह असहाय अस्मिता
जिसे न्याय कहते हैं
नोची, जलाई जा रही है
रोज़ ब रोज़
पर किसी साजिश के
सबूत अपर्याप्त हैं
अदालत का फैसला है
कोई जिम्मेदार नहीं
बाइज्ज़त बरी हों
आरोपी सारे
और आरोपियों से
निवेदन है उस
ढांचे के बदले
भव्य मंदिर बनाएं
न्याय हो न हो
न्याय की भव्य
मूर्ति हो
पूजा हो
रोज़ ब रोज़
यहाँ हर हृदय में
फासला समाया है
हमने अपना कलंक
मुकुट पर सजाया है
बापू लौट जा
ये देस पराया है
सत्य की कब्र पर
रक्त जमाया है
हमने राम मन्त्र से
नाथू पनपाया है
बापू लौट जा
ये देस पराया है
कोई पुलिस
कोई अदालत
कोई नेता
नहीं मार सकता
न्याय को
न्याय की हत्या
करते हैं
हम और आप
अपने मत से
बहुमत से
क्यों बैठे हो तुम
चुपचाप
क्या तुम्हारी
जिव्हा भी
काट ली है
पूर्वाग्रहों ने
चुपचाप
क्या तुम्हारी
आत्मा भी
जला दी गई है
रात के अँधेरे में
चुपचाप
अस्तित्व
हुआ करता था
भारत में
मेरा भी
अस्थाई सही
हाशिये पर सही
सरकार मुझे
गिनती तो थी
पर अब
मैं नहीं रहा
मुझे मार दिया
दो बार
पहले
हाईवे पर
चलते हुए
और फिर
सरकारी
आंकड़ों में
वो धर्म बचा रहा है
तू स्कूल अस्पताल न कर
राजा से सवाल न कर
वो इतिहास सँवार रहा है
तू नौकरी पर बवाल न कर
राजा से सवाल न कर
वो बुलेट ट्रेन दौड़ा रहा है
तू "पॉटहोल" का खयाल न कर
राजा से सवाल न कर
लोग सदमे में हैं
कहते हैं उसका
उज्जवल भविष्य था
फिर कैसे
वह मर गया
कुछ कहते हैं
आत्महत्या
कुछ कहते हैं
उसे मारा उन्होंने
जो उससे प्यार
का दावा करते हैं
जाँच होनी चाहिए
कैसे मरा
भारत
जस्टिस फॉर भारत
राजा और मारीच
घने मित्र हैं
जब जब राजा
लछ्मण रेखा
लांघता है,
सीता हर लेता है
तब तब मारीच
स्वर्ण मृग बन
जनता को
दूर ले जाता है
राजा और मारीच
घने मित्र हैं
रोज वही लाश
नोच कर खा रहे
अर्नब, नाविका, सुधीर
तुम ठीक तो हो?
तुम्हें नींद तो
अच्छी आती ही होगी?
तुम अपने बच्चों को
सीख अच्छी देते ही होगे?
रोज उसी लाश
का कत्ल होते
देख रहे दर्शकों
तुम ठीक तो हो?
तुम जानते तो हो
वह लाश तुम्हारे
अपने बच्चों के
भविष्य की है?
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का