और
रूप
वस्त्र
साधन
उपलब्धियाँ
ज्ञान
पहनता रहा
मैं
कम
अधूरा
खाली
दिखता रहा
आईना
फिर
उतारा
मैंने
सैलाब
हो गया
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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