Thursday, October 15, 2020

नाम

सारे नाम

धीमे-धीमे

रखता रहा

घर के बाहर


प्रेम

धीमे-धीमे

बढ़ता रहा

घर के भीतर


नाम

ढक लेते हैं

पहचान को

अँधेरे की तरह


साफ़ है सब 

रोशनी है अब  

No comments:

Post a Comment

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का