सारे नाम
धीमे-धीमे
रखता रहा
घर के बाहर
प्रेम
बढ़ता रहा
घर के भीतर
नाम
ढक लेते हैं
पहचान को
अँधेरे की तरह
साफ़ है सब
रोशनी है अब
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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