Sunday, October 18, 2020

घाव

 कुछ अपने

कुछ अपनाए हुए

बीते क्षणों

के घाव लिए

घायल

घूम रहे हैं

हम सब


कर्म के

शर्म के

धर्म के

मर्म के

इन घावों

के आदी 

हो गए हैं

हम सब


व्हाट्सएप

और टीवी से

हर रोज़

इन घावों को

कुरेदते हैं

हम सब


इन घावों

और उनमें जमा

घृणा-पीब को

कोई शत्रु

प्रेम-मरहम से 

छरछरा न सके

इसलिए सतर्क

रहते हैं

हम सब

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का