Sunday, October 4, 2020

सबूत अपर्याप्त हैं

वह विवादित ढांचा

जिसे संविधान कहते हैं

गिराया जा रहा है

रोज़ ब रोज़

पर किसी साजिश के

सबूत अपर्याप्त हैं


वह असहाय अस्मिता

जिसे न्याय कहते हैं

नोची, जलाई जा रही है

रोज़ ब रोज़

पर किसी साजिश के

सबूत अपर्याप्त हैं


अदालत का फैसला है

कोई जिम्मेदार नहीं

बाइज्ज़त बरी हों

आरोपी सारे


और आरोपियों से

निवेदन है उस

ढांचे के बदले

भव्य मंदिर बनाएं


न्याय हो न हो

न्याय की भव्य

मूर्ति हो

पूजा हो

रोज़ ब रोज़

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का