Wednesday, December 2, 2020

मेहमान

चाँद कुछ ऐसा मेहरबान था 
सिमट मेरे घर वो मेहमान था
अपना भी तो बड़ा मकान था
दिल खुल गया आसमान था

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का