Sunday, December 6, 2020

पिल्ला

दौड़ता पहिया
बढ़ जाता है

समय नहीं
कि देखे
अपने कुचले
निरीह पिल्ले को
रक्त उगलते
रुकती सांसों से
प्राण निकलते

पहिया हो गया
इंसान
और इंसानियत
कुचला पिल्ला

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का