Friday, December 4, 2020

खोह

एक ब्रम्ह-खोह है

जहाँ से स्वतः

प्रकट होती है

कविता

कला

कृति

संगीत


नहीं रचयिता 

हम जरिया हैं

ब्रम्ह के

अंधियारे

सन्नाटे की

अभिव्यक्ति का 


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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का