एक ब्रम्ह-खोह है
जहाँ से स्वतः
प्रकट होती है
कविता
कला
कृति
संगीत
नहीं रचयिता
हम जरिया हैं
ब्रम्ह के
अंधियारे
सन्नाटे की
अभिव्यक्ति का
x
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
No comments:
Post a Comment