राजा और मारीच
घने मित्र हैं
जब जब राजा
लछ्मण रेखा
लांघता है,
सीता हर लेता है
तब तब मारीच
स्वर्ण मृग बन
जनता को
दूर ले जाता है
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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