Friday, July 2, 2021

राहु

भूत भविष
भाव भावना
भय औ भव के
भ्रम जाल में
ढक रखा है
राहु ने
सूरज को

अपना ओज 
निखार
राहु को
राख कर
जल उठना
यही सूरज का
धर्म है 

Tuesday, June 29, 2021

तितली

तुमने सुना होगा
एक तितली के
पंख फडफडाने भर से
तूफान आता है

मैंने देखा है
उस तितली
और उस तूफान को
अपने भीतर

Thursday, May 27, 2021

भविष्य की लाश

एक दिन तुम 
एक गुम्बद पर चढ़े थे
और तुम पर चढ़ा था
भूत का भूत

तुमने गिराया था 
उस गुम्बद को
और उस भूत ने तुम्हारे 
भविष्य के भविष्य को

अब सिंहासन पर
भूत बैठा है और 
भविष्य की लाश 
तैर रही है गंगा में

Wednesday, May 26, 2021

गिनती

गिनती नहीं इतने ये शव
गिनती नहीं जिनकी ये शव
मुए क्यों नहीं  मरते ये शव



Tuesday, May 25, 2021

कफ़न

रेत में जो हैं दफन
खतरे में है इनसे वतन
खींच लो इनके कफन






Saturday, May 22, 2021

आँसू

आत्मा
तर जाती है जब 
दिल से निकलता है
आँसू

आत्मा
उतर जाती है जब 
दिमाग से निकलता है
आँसू

आत्मा 
की धुरी हैं
आँसू

जनतंत्र

जनतंत्र को हुआ कोरोना
मरघट पर जन का रोना
कैमरे पर तंत्र का रोना

Thursday, May 20, 2021

साजिश

तूफ़ान को छूट है आए
पेड़, झोपड़ी, आदमी गिराए 
पर महल के पर्दे न हिलाए
पर्दों का हिलना साजिश होगा

हवा को छूट है जाए
राजा के मन की बात सुनाए
पर मुर्दों की गंध, राख न फैलाए
राख का फैलना साजिश होगा

Monday, May 10, 2021

आंकड़े

क्या फूल कर उतराएंगे
आंकड़े जो डूबे हैं गंगा में

Friday, May 7, 2021

आँख

पत्थर बुत गल जाएंगे
रेत महल ढह जाएंगे
बस तू आँख खोल ले

रोशनी

क्यों रोशनी थी चाही अंधेरे के आकाओं से
कि आसमाँ भी जल उठा है चिताओं से

Tuesday, May 4, 2021

नादानी

तेरी नाकामी तेरा कसूर नहीं
अपनी नादानी पे तरस आता है

Tuesday, April 27, 2021

ठीक ना फिर अब सब करना

थम जाएगा तूफ़ान यह जब
वो ठीक करने लगेंगे सब
तुम मगर अब ना फसना 
ठीक ना फिर अब सब करना

मंदिर, मूरत, धर्म, जाति न 
पिछले कल पर कट मरना
शिक्षा, कक्षा, किताबों से
अपना अगला कल रचना

ठीक ना फिर अब सब करना

लीडर की लहर हवा नहीं
अपनी दवा प्राण वायु चुनना  
बुरों में कम बुरा सम्राट नहीं
नोटा या काबिल सेवक चुनना

ठीक ना फिर अब सब करना

Friday, April 23, 2021

सुओ मोटो

आई सी यू में
बीमार जनतंत्र
के बगल में
व्यवस्था भी
बीमार पड़ी है

सुप्रीम कोर्ट ने
सुओ मोटो
संज्ञान लिया है
कि व्यवस्था
पवित्र गाय है

यही गाय
काबिल गौरक्षकों
और जजों को
संसद भेजती है

यह अदालत
आदेश देती है
सारी आक्सीजन
लगाकर बचाया जाए
इस गाय को

Sunday, April 18, 2021

दैत्य

घृणा हो रही है इन दैत्यों से हमें भी
अब पूछ मत लेना किसने बनाया इन्हें

Tuesday, April 13, 2021

मूर्ख

मूर्ख ने
कतार में
मर खप कर
सत्ता चुनी

मूर्ख ने
दवा
एम्बुलेंस
अस्पताल
शमशान की
कतार में
मर खप कर
साँस छोड़ी

जिन्दा मूर्ख
की गिनती
वोटर लिस्ट
में है

मुर्दा मूर्ख
की गिनती
आकड़ों में
भी नहीं

Saturday, April 3, 2021

डिक्की

बीच रास्ते
न्याय की
कानून की
मीडिया की
संस्थाओं की
गाड़ी खराब
हो गई

शुक्र है
दूरदर्शी नेताओं ने
खराब गाड़ी से
निकाल कर
अपनी डिक्की में
सुरक्षित रख लिया है
लोकतंत्र

Monday, March 29, 2021

चालाक

आज 
कट रही टहनी पर
तुम्हारा घोंसला नहीं है
इसलिए शांत हो
तुम चालाक हो

जिसका घोंसला है
वह भी तो चालाक था
कल तक

Tuesday, March 23, 2021

सूरज

सूरज
मुझसे पहले भी
चमक रहा था

सूरज
मेरे बाद भी
चमकेगा

इस दरम्यान
रात नही होने देना
यह मेरा काम है

Tuesday, March 2, 2021

एक और दुनिया

ऐ ईश्वर
तू है सचमुच तो
बनाई होगी तूने
एक और दुनिया

सत्ता होती होगी
निस्वार्थ लुटतेे हुए 
पेड़ों की वहाँ

जहाँ आदमियों से
बिलबिलाते होंगे
जमाखोर लोभी
आदमी

Sunday, February 14, 2021

डर

तेरे सच की चिंगारी से
उसका महल जो पिघल रहा है

तेरे सवालों के जुगनुओं से
उसका अँधेरा जो बुझ रहा है

वो तुझे डराएगा
वो डर जो रहा है 

Friday, February 5, 2021

मजबूरी

मत पूछो 
वो क्यों चुप थे
जब बोलना था
मजबूरी होती है
मशहूरी की

मत पूछो
क्यों ट्वीट पड़े
जब चुप रहना था
मजबूरी होती है
मशहूरी की

तुम खिलाड़ी नहीं
तुम कलाकार नहीं
तुम नहीं समझोगे
मजबूरी होती है
मशहूरी की

Thursday, February 4, 2021

साहब

खेतों में कील बोआते हो
खौफ की फसल उगाते हो
फिर सीने का नाप गिनाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

एक मजाक से मर जाते हो
एक कटाक्ष से कट जाते हो
फिर मन की बात बताते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

चीन को झूला झुलाते हो
नेहरू को गरियाते हो
फिर हैशटैग जंग चलाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

शिक्षा बजट घटाते हो
पेट्रोल गगन छुआते हो
फिर अच्छे दिन दिखलाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

Wednesday, February 3, 2021

सवाल

रल
मादक
मोहक
होता है
पर जवाब
मिथ्या भ्रामक
होता है

कठिन
कठोर
कुरूप
होता है
पर सवाल
पथ प्रदर्शक
होता है

सवाल
की ऊंगली ही
पहुँचाती है
सत्य तक


Tuesday, February 2, 2021

मंच

रिक्त में 
व्यक्त
विस्तृत
और विलीन
होता हूँ
मैं

इस दरम्यान
रिक्त से
अतिरिक्त 
होने का
दम्भ
भरता हूँ
मैं

समय और 
स्थान के
रिक्त
रंगमंच पर
अभिनय
करता हूँ
मैं

और
मंच से परे
उदासीन
कौतूहल से
अपना अभिनय
निरखता हूँ
मैं

Monday, February 1, 2021

नदी

पानी नहीं मैं
जो बह रहा
सतत 
समय सा

नदी हूँ मैं
जो ठहरी
सतत
क्षण सी

पानी का
उठता गिरता
अबोध
कोलाहल 
समाए
स्थिर
प्रज्ञ
शांत
नदी हूँ 
मैं

Saturday, January 30, 2021

मक्कार बापू

तुम्हें
तुम्हारी अहिंसा 
तुम्हारे मूल्यों
तुम्हारे देश को
मारा 
जिन्होंने एक बार
जिन्होंने बार बार
और जिन्होंने हर रोज़

तुम्हें
तुम्हारी अहिंसा 
तुम्हारी मूल्यों
तुम्हारे देश को
मारने वालों को 
जिन्होंने संसद भेजा

आज सभी तुम्हारी 
स्तुति गाएंगे

सचमुच बड़े 
मक्कार थे तुम
बापू

Thursday, January 28, 2021

सिंहासन

सिंहासन पर
उठी हर ऊंगली
दूसरी हो जाती है

लंगड़ा है राजा का सिंहासन टिका है
दूसरेपन पर

Tuesday, January 26, 2021

देशभक्त

मीडिया, अदालत, नेता, संस्थान
रोंदें गर रौंदें दर रोज संविधान
तू मगर बावला न बन ऐ किसान
हम नहीं सहेंगे झंडे का अपमान

Friday, January 22, 2021

छन्नी

लिखा हुआ 
देख रहे हो
यह कविता
नहीं है

महीन छन्नी से
शब्द छान लो

अब शेष रहा
वह भी कविता
नहीं है

और महीन 
छन्नी से
विचार छान लो

अब शेष रहा
वह भी कविता
नहीं है

और भी महीन 
छन्नी से
सार छान लो

अब शेष रहा
अदृश्य अव्यक्त
शून्य शांत 

थाम लो
यही है
कविता

ले जाएगी 
तुम्हें यह 
स्रोत तक
ब्रह्म तक
सत्य तक

Sunday, January 10, 2021

मसखरे

नहीं कहा कुछ
मसखरे ने
पर सुन लिया
मसखरों ने

आहत मसखरों ने
मसखरे को
कैदी बना दिया 

नहीं किया कुछ
मसखरे ने
पर मान लिया
मसखरों ने

खुश मसखरों ने
मसखरे को
राजा बना दिया 

Friday, January 8, 2021

राह

राह पर थम
और को 
राह दिखाता रहा
मैं राह पाता रहा
और राह पाता रहा

Wednesday, January 6, 2021

वैक्सीन

ताली थाली पीट भए, लिए करोनिल चबाए
काढ़ा पी इम्म्यून भए, सुसरा कोरोना न जाए

भोंक लियो वैक्सीन
अब, बिन पूछे परमाण
जो टीका टीका करे, सो पहुंचे पाकिस्तान

Friday, January 1, 2021

सूरज उगा है

धर्म मजहब बाँटता
कपड़ों से आदमी भाँपता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है

मजदूर रास्ते नापता
किसान पैबंद टाँँकता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है

प्रेयसी

राज़ है यह 
मत 
कहना  
किसी से

एक थी
प्रेयसी मेरी
और हम
मिलते थे
हर रोज़

आती थी वो 
राजकुमारी सी
पाँच अश्वों के
तेज रथ पर

बड़ी मेज़ 
लगती थी हमें
वह पाँचों अश्व 
साथ जो बिठाती थी
 
हम उम्र थी
पर बच्चों सी
चंचल, खोई
कहनियों में
और सपनों में

डर से पीली
ईर्ष्या से नीली
क्रोध से लाल
प्यार से गुलाबी  

उसका रंग
बदलता रहता  
हर पल
हर कहानी 
हर सपने पर

और उसके
हिनहिनाते घोड़े
खींच ले जाते
मुझे भी
उन रंगों की
भूलभुलैया में 

पर अब
मोहभंग हो रहा है 
समझने लगा हूँ
जादूगरनी है 
मेरी प्रेयसी

कैद किया था
मुझे अपने 
अश्वों
कहानियाँ
सपनों में

मिलते हैं
हम अब भी
पर डूबता नहीं
मैं उसके रंगों में

देखता रहता हूँ
केवल उसे
शांत 
मुस्कुराते हुए

कम हो रहा है
अब जादू उसका
साथ नहीं लाती है
अपने अश्वों को अब
और थम रही हैं
उसकी कहानियाँ

नहीं होता
पीला नीला 
लाल गुलाबी
उसका चेहरा

अब मैं
उसका प्रेयस
बन रहा हूँ 
और चल रहा है
मेरा जादू

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का