Monday, February 1, 2021

नदी

पानी नहीं मैं
जो बह रहा
सतत 
समय सा

नदी हूँ मैं
जो ठहरी
सतत
क्षण सी

पानी का
उठता गिरता
अबोध
कोलाहल 
समाए
स्थिर
प्रज्ञ
शांत
नदी हूँ 
मैं

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का