धर्म मजहब बाँटता
कपड़ों से आदमी भाँपता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है
कपड़ों से आदमी भाँपता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है
मजदूर रास्ते नापता
किसान पैबंद टाँँकता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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