पुराने खटमल
खून चूसते थे
और मौन था
उनका मुखिया
बदल दिया
नये खटमल
अच्छे हैं
खून चूसते हैं
पर अपने हैं
संस्कारी हैं
इनका मुखिया
बहुत भाता है
गाता है
जोशीले गाने
नहीं होने देता
एहसास टीस का
धन्य हो रहा हूँ
खून दे कर
देश के लिए
न सही
देशभक्त खटमलों
के लिए ही
Sunday, October 16, 2016
मैं क्षण एक
न था मैं पहले
न रहूँगा परे
इस क्षण से
न रहूँगा परे
इस क्षण से
मैं हूँ
केवल अभी
इसी क्षण
केवल अभी
इसी क्षण
जीता जीतता
मैं इसे
यह मुझे
मैं इसे
यह मुझे
नहीं पृथक मैं
न है यह
पृथक मुझसे
न है यह
पृथक मुझसे
मैं
क्षण
एक
क्षण
एक
Monday, September 26, 2016
कायर
कहता रहा मुझको कायर हमेशा
तू चलने लगा अब मेरे रास्तों पर
कहते है छप्पन का सीना तेरा है
छोटा कहाँ था मेरा दिल भी तुझसे
(एक पूर्व प्रधान मंत्री की ओर से, उनके जन्म दिवस पर )
तू चलने लगा अब मेरे रास्तों पर
कहते है छप्पन का सीना तेरा है
छोटा कहाँ था मेरा दिल भी तुझसे
(एक पूर्व प्रधान मंत्री की ओर से, उनके जन्म दिवस पर )
Wednesday, September 14, 2016
Saturday, July 16, 2016
Wednesday, July 13, 2016
Saturday, July 9, 2016
मेमने
रेल की बोरियों में
लदे, दबे
चले जा रहे हैं
मेमने
लदे, दबे
चले जा रहे हैं
मेमने
काटते हैं वक्त
काट न दे इन्हें
वक्त जब तक
चीखती हैं
इनकी चुप्पियाँ
सुनिये!
(5-Jul-2016)
काट न दे इन्हें
वक्त जब तक
चीखती हैं
इनकी चुप्पियाँ
सुनिये!
(5-Jul-2016)
Friday, July 1, 2016
मानव महान
रात सपने में
ईश्वर प्रकट हुए
दिव्य साक्षात
उठा मैं स्वागत हेतु
परन्तु रोक लिया
उन्होंने दौड़ कर
कहा कष्ट न कर
ऐ मानव
तू है तो मैं हूँ
ठौर है मेरी
मंदिर में
तेरे बनाए
खाता पहनता हूँ
तेरे चढ़ावे को
तू करता है
इतना कुछ मेरे लिए
न तेरे अपनों के लिए
जो सोते हैं भूखे बेछत
क्योंकि तू महान है
मुझ सा भगवान नहीं
ईश्वर प्रकट हुए
दिव्य साक्षात
उठा मैं स्वागत हेतु
परन्तु रोक लिया
उन्होंने दौड़ कर
कहा कष्ट न कर
ऐ मानव
तू है तो मैं हूँ
ठौर है मेरी
मंदिर में
तेरे बनाए
खाता पहनता हूँ
तेरे चढ़ावे को
तू करता है
इतना कुछ मेरे लिए
न तेरे अपनों के लिए
जो सोते हैं भूखे बेछत
क्योंकि तू महान है
मुझ सा भगवान नहीं
Friday, June 17, 2016
गीत
सांझ
ढले मेरी आँखों में
तस्वीर
सी इक खिंच जाती हैअनदेखी अनजानी सी
टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं के जालों सी
खूब वो
मन को भाती है जब
इन्द्रधनुष
की सतरंगी पोशाकों मेंझिल मिल तारों की कुटिया से
वो झांक मुझे मुस्काती है
वसंत
पुष्प के अधरों सी
नदिया
के निर्झर निनाद सीभोर किरण की लाली सी
जब मन पर छा जाती है
मैं भाव
कुंज में खो जाता हूँ
यादों
के तारों से झंकृतगीत वो फिर दोहराता हूँ
गीत वो फिर दोहराता हूँ
Monday, June 13, 2016
पंख
उपजा
शून्य से
मैं
मैं
पंख
पंख एक
गुरुत्वहीन
चिर
सतत
बैठा
क्षण पर
क्षण एक
समयहीन
चिर
सतत
समेटे
अधर को
अधर एक
अथाह
चिर
सतत
इंतज़ार में
शून्य के
शून्य एक
मूक
स्याह
चिर
सतत
उठा लेगा
शून्य
इस पंख को
परे क्षण से
परे अधर से
नए भ्रमण पर
चिर
सतत
शून्य से
मैं
मैं
पंख
पंख एक
गुरुत्वहीन
चिर
सतत
बैठा
क्षण पर
क्षण एक
समयहीन
चिर
सतत
समेटे
अधर को
अधर एक
अथाह
चिर
सतत
इंतज़ार में
शून्य के
शून्य एक
मूक
स्याह
चिर
सतत
उठा लेगा
शून्य
इस पंख को
परे क्षण से
परे अधर से
नए भ्रमण पर
चिर
सतत
Sunday, May 1, 2016
रावण
कलियुग रावण महिमा अद्भुद, हार गए श्री राम
मन मंदिर मर्यादा हर ली, ले पुरुषोत्तम नाम
(१५-अप्रैल-२०१६)
मन मंदिर मर्यादा हर ली, ले पुरुषोत्तम नाम
(१५-अप्रैल-२०१६)
गीली रेत
भारत भक्ति
सलीम खान अचरज में है यह कविता मैंने कब बुन ली
नहीं कही जो बातें मैंने भक्तों ने वो कैसे सुन ली
ज़ी छी टीवी के करतब से वैश्या हर शर्मिंदा है
सुपारी वीडियो चलाता कहता गन्दा है पर धंधा है
दाल के दर्शन दुर्लभ पर तुम दंगे कलह लगाते हो
हिन्दु मुस्लिम काट बाँट सत्ता की रोटी खाते हो
भगवा भगत अवरोही कट्टर, हिंदू हिंद बदनाम करें
आओ जोड़े जन मानस मन, भू भारत के भक्त बनें
(सलीम खान के मत्थे मढ़ी गई निम्न "कविता" के प्रत्युत्तर स्वरुप, २०-मार्च-२०१६ )
नहीं कही जो बातें मैंने भक्तों ने वो कैसे सुन ली
ज़ी छी टीवी के करतब से वैश्या हर शर्मिंदा है
सुपारी वीडियो चलाता कहता गन्दा है पर धंधा है
दाल के दर्शन दुर्लभ पर तुम दंगे कलह लगाते हो
हिन्दु मुस्लिम काट बाँट सत्ता की रोटी खाते हो
भगवा भगत अवरोही कट्टर, हिंदू हिंद बदनाम करें
आओ जोड़े जन मानस मन, भू भारत के भक्त बनें
(सलीम खान के मत्थे मढ़ी गई निम्न "कविता" के प्रत्युत्तर स्वरुप, २०-मार्च-२०१६ )

Monday, March 7, 2016
दायरे
अनेकों हैं सृष्टि
अनंत है हर सृष्टि
समेटे है खुद को
क्यों तू दायरों में
बढ़ा अपनी हस्ती
समेटे हर सृष्टि
बन कर तू इंसाँ
बन जा विधाता
अनंत है हर सृष्टि
समेटे है खुद को
क्यों तू दायरों में
बढ़ा अपनी हस्ती
समेटे हर सृष्टि
बन कर तू इंसाँ
बन जा विधाता
Saturday, March 5, 2016
Saturday, January 9, 2016
अहिल्या
क्यों है हक़ गौतम ऋषि को
क्यों मुझे अभिशाप दें
क्यों इन्द्र को सब देव पूजें
क्यों मेरा अपमान हो
क्यों तकूँ मैं राह रघु की
क्यों मेरा "उद्धार" हो
क्यों मुझे अभिशाप दें
क्यों इन्द्र को सब देव पूजें
क्यों मेरा अपमान हो
क्यों तकूँ मैं राह रघु की
क्यों मेरा "उद्धार" हो
Thursday, January 7, 2016
शुतुरमुर्ग
न जगाओ उन्हें वो जो सोये नहीं हैं
आँखें हैं उनकी अंधेरों की आदी
मिथक मोम से है बने बुत वो जगमग
पिघल जाएंगे धूप सच की पड़ी तो
आँखें हैं उनकी अंधेरों की आदी
मिथक मोम से है बने बुत वो जगमग
पिघल जाएंगे धूप सच की पड़ी तो
Friday, January 1, 2016
Subscribe to:
Posts (Atom)
दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
-
क्यों है हक़ गौतम ऋषि को क्यों मुझे अभिशाप दें क्यों इन्द्र को सब देव पूजें क्यों मेरा अपमान हो क्यों तकूँ मैं राह रघु की क्यों मेरा ...
-
खुदा ने पूछा मैं कौन "मैं" ने व्याख्या दी शास्त्र की, तर्क दिए विज्ञान के और खुदा हँसने लगा खुदा ने पूछा मैं कौन मैं शांत रहा ...
-
तेरी कुर्बानी का रहेगा एहसान, ऐ दोस्त मैंने खोई कुछ ही दौलत, पर तूने यारी