Sunday, May 1, 2016

भारत भक्ति

सलीम खान अचरज में है यह कविता मैंने कब बुन ली
नहीं कही जो बातें मैंने भक्तों ने वो कैसे सुन ली

ज़ी छी टीवी के करतब से वैश्या हर शर्मिंदा है
सुपारी वीडियो चलाता कहता गन्दा है पर धंधा है

दाल के दर्शन दुर्लभ पर तुम दंगे कलह लगाते हो
हिन्दु मुस्लिम काट बाँट सत्ता की रोटी खाते हो

भगवा भगत अवरोही कट्टर, हिंदू हिंद बदनाम करें
आओ जोड़े जन मानस मन, भू भारत के भक्त बनें

(सलीम खान के मत्थे मढ़ी गई निम्न "कविता" के प्रत्युत्तर स्वरुप, २०-मार्च-२०१६ )

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का