Sunday, May 1, 2016

गीली रेत

शुष्क रेत
तटस्थ, विरक्त
लहरों से दूर
सीपियों के
मरघट सी

प्रवाहित रेत
उठती गिरती
हर लहर के साथ
कमजोर

गीली रेत
सोख लेती सहज
उठती लहर को
तज देती सहज
गिरती लहर को

मुझे बनना है
गीली रेत
अपना कर
हर उठते गिरते
अनुभव को

बिना बहे
बिना सूखे

(०७-अप्रैल-२०१६)


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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का