Friday, July 1, 2016

मानव महान

रात सपने में
ईश्वर प्रकट हुए
दिव्य साक्षात

उठा मैं स्वागत हेतु
परन्तु रोक लिया
उन्होंने दौड़ कर
कहा कष्ट न कर
ऐ मानव
तू है तो मैं हूँ


ठौर है मेरी
मंदिर में
तेरे बनाए
खाता पहनता हूँ
तेरे चढ़ावे को

तू करता है
इतना कुछ मेरे लिए
न तेरे अपनों के लिए
जो सोते हैं भूखे बेछत

क्योंकि तू महान है
मुझ सा भगवान नहीं

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का