रात सपने में
ईश्वर प्रकट हुए
दिव्य साक्षात
उठा मैं स्वागत हेतु
परन्तु रोक लिया
उन्होंने दौड़ कर
कहा कष्ट न कर
ऐ मानव
तू है तो मैं हूँ
ठौर है मेरी
मंदिर में
तेरे बनाए
खाता पहनता हूँ
तेरे चढ़ावे को
तू करता है
इतना कुछ मेरे लिए
न तेरे अपनों के लिए
जो सोते हैं भूखे बेछत
क्योंकि तू महान है
मुझ सा भगवान नहीं
ईश्वर प्रकट हुए
दिव्य साक्षात
उठा मैं स्वागत हेतु
परन्तु रोक लिया
उन्होंने दौड़ कर
कहा कष्ट न कर
ऐ मानव
तू है तो मैं हूँ
ठौर है मेरी
मंदिर में
तेरे बनाए
खाता पहनता हूँ
तेरे चढ़ावे को
तू करता है
इतना कुछ मेरे लिए
न तेरे अपनों के लिए
जो सोते हैं भूखे बेछत
क्योंकि तू महान है
मुझ सा भगवान नहीं
No comments:
Post a Comment