उपजा
शून्य से
मैं
मैं
पंख
पंख एक
गुरुत्वहीन
चिर
सतत
बैठा
क्षण पर
क्षण एक
समयहीन
चिर
सतत
समेटे
अधर को
अधर एक
अथाह
चिर
सतत
इंतज़ार में
शून्य के
शून्य एक
मूक
स्याह
चिर
सतत
उठा लेगा
शून्य
इस पंख को
परे क्षण से
परे अधर से
नए भ्रमण पर
चिर
सतत
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