डोर बँधा
मैं छोर बँधा
लोभ बँधा
मैं क्षोभ बँधा
मैं छोर बँधा
लोभ बँधा
मैं क्षोभ बँधा
काट बंध
मैं बहूँ स्वछंद
नित लहर संग
मैं तरल ब्रह्म
किताब
जादूगरनी है
मुझसे पहले
पढ़ लेती है
मुझे
किताब
चापलूस है
सुनाती हमेशा
पसंदीदा कहानी
मुझे
किताब
आँधी है
झकझोरती
गहरी नींद से
मुझे
किताब
माँ है
मरहम लगाकर
सुला देती
मुझे
किताब
केवल है
कोरी, निःशब्द
लिख रही
मुझे
एक ब्रम्ह-खोह है
जहाँ से स्वतः
प्रकट होती है
कविता
कला
कृति
संगीत
नहीं रचयिता
हम जरिया हैं
ब्रम्ह के
अंधियारे
सन्नाटे की
अभिव्यक्ति का
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दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का