Monday, December 28, 2020

डोर

डोर बँधा
मैं छोर बँधा
लोभ बँधा
मैं क्षोभ बँधा

काट बंध
मैं बहूँ स्वछंद
नित लहर संग
मैं तरल ब्रह्म

Sunday, December 20, 2020

किताब

किताब
जादूगरनी है
मुझसे पहले
पढ़ लेती है
मुझे

किताब
चापलूस है
सुनाती हमेशा
पसंदीदा कहानी
मुझे

किताब
आँधी है
झकझोरती
गहरी नींद से
मुझे

किताब
माँ है
मरहम लगाकर
सुला देती
मुझे

किताब
केवल है
कोरी, निःशब्द
लिख रही
मुझे

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Friday, December 18, 2020

घर

शब्द, सोच
सामान, समझ

सब बाहर
रख दो

फिर आओ
इस घर में

मिलने
खुद से

Friday, December 11, 2020

सड़ांध

ऊंची उठती रही
अहम् भीत 
और मैं 
घटता रहा

छेद किये हैं कुछ
इस दीवार पर अब
और मैं 
उठने लगा हूँ

नाम, जाति, 
धर्म और देश के 
बाँध से थमे 
कुंठित पानी की 
सड़ांध कम हो रही है

और मैं
बहने लगा हूँ 

Sunday, December 6, 2020

घड़ा

घड़ा अनोखा
गढ़ा ये रब ने

भरता जाऊँ
भर ना पाऊँ

तनिक उड़ेलूँ
दरििया पाऊँ

पिल्ला

दौड़ता पहिया
बढ़ जाता है

समय नहीं
कि देखे
अपने कुचले
निरीह पिल्ले को
रक्त उगलते
रुकती सांसों से
प्राण निकलते

पहिया हो गया
इंसान
और इंसानियत
कुचला पिल्ला

Friday, December 4, 2020

खोह

एक ब्रम्ह-खोह है

जहाँ से स्वतः

प्रकट होती है

कविता

कला

कृति

संगीत


नहीं रचयिता 

हम जरिया हैं

ब्रम्ह के

अंधियारे

सन्नाटे की

अभिव्यक्ति का 


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Thursday, December 3, 2020

सतहें

मैं अपने
घावों
कमियों को  
कोसता रहा

और मैं
घायल
अधूरा
होता रहा 

अब इन्हें
प्यार
दे रहा हूँ

और मैं
स्वस्थ
पूरा
हो रहा हूँ

ये खूबसूरत
सतहें हैं
जो धीरे-धीरे
घुल कर

मुझसे
मुझको
मिला रही हैं

और मैं
स्वस्थ
पूरा
हो रहा हूँ 

Wednesday, December 2, 2020

मेहमान

चाँद कुछ ऐसा मेहरबान था 
सिमट मेरे घर वो मेहमान था
अपना भी तो बड़ा मकान था
दिल खुल गया आसमान था

Tuesday, December 1, 2020

क्षण

अकेलापन
अपनी चिलचिलाती 
छाँव में 
जलाने लगे
जब तुम्हें

तुम देखना
एक हल्का झोंका
एक भीनी खुशबू
एक धीमी आवाज़
या एक जुगनू बन कर 
एहसास दिलाऊँगा
मैं हूँ 
तुम्हारे साथ 

तुम अकेले हो 
जब तक
तुम दौड़ रहे हो
समय के पीछे 
या आगे

ठहरो
जाने दो
आने दो
समय को

और हो जाओ
अकेले
मेरे साथ
मेरे पास

हमेशा रहा हूँ
रहूँगा मैं
बिखेरे हुए
अपना सौंदर्य
तुम्हारे इंतज़ार में
मैं यहीं
मैं अभी

मैं यहीं
मैं अभी 

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का