Sunday, October 27, 2024

धीरे-धीरे

फरेब
बहाने 
झूठ
मिट रहे हैं
धीरे-धीरे

आकृतियाँ
कहानियाँ
शब्द
घुल रहे हैं
धीरे-धीरे

अहम्
वहम्
फहम
से कुछ दूर 
मिल रहे हैं 
हम
धीरे-धीरे

मैं
घट रहा है
धीरे-धीरे
और
मैं
घट रहा हूँ
धीरे-धीरे


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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का