कल और कल
से भरा
खाली रहा
कलसा
एक बूंद
अब से
लबालब भरा
कलसा
कुछ अपने
कुछ अपनाए हुए
बीते क्षणों
के घाव लिए
घायल
घूम रहे हैं
हम सब
कर्म के
शर्म के
धर्म के
मर्म के
इन घावों
के आदी
हो गए हैं
हम सब
व्हाट्सएप
और टीवी से
हर रोज़
इन घावों को
कुरेदते हैं
हम सब
इन घावों
और उनमें जमा
घृणा-पीब को
कोई शत्रु
प्रेम-मरहम से
छरछरा न सके
इसलिए सतर्क
रहते हैं
हम सब
सारे नाम
धीमे-धीमे
रखता रहा
घर के बाहर
प्रेम
धीमे-धीमे
बढ़ता रहा
घर के भीतर
नाम
ढक लेते हैं
पहचान को
अँधेरे की तरह
साफ़ है सब
रोशनी है अब
मैं
ढूंढता रहा
खुद को
शब्दों,
विचारों,
स्थितियों,
परिस्थितियों,
आवाजों,
रोशनियों,
में
वह
इंतजार करता रहा
मेरा
इन सभी के
बीच बैठे
इन सभी को
समाए हुए
शून्य,
शान्त,
अंधेरे,
अंतराल
में
मैं
दौड़ता रहा
खुद को
पाने को
वह
खड़ा रहा
यहीं
अभी
हमेशा से
मेरे लिए
अब
मैं
थम गया हूँ
और
उसने
मुझे
थाम लिया है
अब
मैं नहीं
वह नहीं
बस
शून्य
शान्त
अंधेरा
सूक्ष्म
विस्तृत
अंतराल है
वह विवादित ढांचा
जिसे संविधान कहते हैं
गिराया जा रहा है
रोज़ ब रोज़
पर किसी साजिश के
सबूत अपर्याप्त हैं
वह असहाय अस्मिता
जिसे न्याय कहते हैं
नोची, जलाई जा रही है
रोज़ ब रोज़
पर किसी साजिश के
सबूत अपर्याप्त हैं
अदालत का फैसला है
कोई जिम्मेदार नहीं
बाइज्ज़त बरी हों
आरोपी सारे
और आरोपियों से
निवेदन है उस
ढांचे के बदले
भव्य मंदिर बनाएं
न्याय हो न हो
न्याय की भव्य
मूर्ति हो
पूजा हो
रोज़ ब रोज़
यहाँ हर हृदय में
फासला समाया है
हमने अपना कलंक
मुकुट पर सजाया है
बापू लौट जा
ये देस पराया है
सत्य की कब्र पर
रक्त जमाया है
हमने राम मन्त्र से
नाथू पनपाया है
बापू लौट जा
ये देस पराया है
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का