Saturday, January 30, 2021

मक्कार बापू

तुम्हें
तुम्हारी अहिंसा 
तुम्हारे मूल्यों
तुम्हारे देश को
मारा 
जिन्होंने एक बार
जिन्होंने बार बार
और जिन्होंने हर रोज़

तुम्हें
तुम्हारी अहिंसा 
तुम्हारी मूल्यों
तुम्हारे देश को
मारने वालों को 
जिन्होंने संसद भेजा

आज सभी तुम्हारी 
स्तुति गाएंगे

सचमुच बड़े 
मक्कार थे तुम
बापू

Thursday, January 28, 2021

सिंहासन

सिंहासन पर
उठी हर ऊंगली
दूसरी हो जाती है

लंगड़ा है राजा का सिंहासन टिका है
दूसरेपन पर

Tuesday, January 26, 2021

देशभक्त

मीडिया, अदालत, नेता, संस्थान
रोंदें गर रौंदें दर रोज संविधान
तू मगर बावला न बन ऐ किसान
हम नहीं सहेंगे झंडे का अपमान

Friday, January 22, 2021

छन्नी

लिखा हुआ 
देख रहे हो
यह कविता
नहीं है

महीन छन्नी से
शब्द छान लो

अब शेष रहा
वह भी कविता
नहीं है

और महीन 
छन्नी से
विचार छान लो

अब शेष रहा
वह भी कविता
नहीं है

और भी महीन 
छन्नी से
सार छान लो

अब शेष रहा
अदृश्य अव्यक्त
शून्य शांत 

थाम लो
यही है
कविता

ले जाएगी 
तुम्हें यह 
स्रोत तक
ब्रह्म तक
सत्य तक

Sunday, January 10, 2021

मसखरे

नहीं कहा कुछ
मसखरे ने
पर सुन लिया
मसखरों ने

आहत मसखरों ने
मसखरे को
कैदी बना दिया 

नहीं किया कुछ
मसखरे ने
पर मान लिया
मसखरों ने

खुश मसखरों ने
मसखरे को
राजा बना दिया 

Friday, January 8, 2021

राह

राह पर थम
और को 
राह दिखाता रहा
मैं राह पाता रहा
और राह पाता रहा

Wednesday, January 6, 2021

वैक्सीन

ताली थाली पीट भए, लिए करोनिल चबाए
काढ़ा पी इम्म्यून भए, सुसरा कोरोना न जाए

भोंक लियो वैक्सीन
अब, बिन पूछे परमाण
जो टीका टीका करे, सो पहुंचे पाकिस्तान

Friday, January 1, 2021

सूरज उगा है

धर्म मजहब बाँटता
कपड़ों से आदमी भाँपता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है

मजदूर रास्ते नापता
किसान पैबंद टाँँकता
यहाँ तो चाँँद भी ढका है
सुना है कहीं सूरज उगा है

प्रेयसी

राज़ है यह 
मत 
कहना  
किसी से

एक थी
प्रेयसी मेरी
और हम
मिलते थे
हर रोज़

आती थी वो 
राजकुमारी सी
पाँच अश्वों के
तेज रथ पर

बड़ी मेज़ 
लगती थी हमें
वह पाँचों अश्व 
साथ जो बिठाती थी
 
हम उम्र थी
पर बच्चों सी
चंचल, खोई
कहनियों में
और सपनों में

डर से पीली
ईर्ष्या से नीली
क्रोध से लाल
प्यार से गुलाबी  

उसका रंग
बदलता रहता  
हर पल
हर कहानी 
हर सपने पर

और उसके
हिनहिनाते घोड़े
खींच ले जाते
मुझे भी
उन रंगों की
भूलभुलैया में 

पर अब
मोहभंग हो रहा है 
समझने लगा हूँ
जादूगरनी है 
मेरी प्रेयसी

कैद किया था
मुझे अपने 
अश्वों
कहानियाँ
सपनों में

मिलते हैं
हम अब भी
पर डूबता नहीं
मैं उसके रंगों में

देखता रहता हूँ
केवल उसे
शांत 
मुस्कुराते हुए

कम हो रहा है
अब जादू उसका
साथ नहीं लाती है
अपने अश्वों को अब
और थम रही हैं
उसकी कहानियाँ

नहीं होता
पीला नीला 
लाल गुलाबी
उसका चेहरा

अब मैं
उसका प्रेयस
बन रहा हूँ 
और चल रहा है
मेरा जादू

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का