Friday, July 25, 2014

कसक

#१

मुस्कराते हैं क्यों ये ज़रुरत से ज्यादा
इन होठों का भी कुछ ईमान तो होगा

#२

बयाँ है अलग सा उन आँखों के नीचे
कसक झांकती है ठहाकों के पीछे

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का