अभी तो हटाई थी हमने फफूंदी
है मरहम दरारों पर ताज़ा अभी
फ़िर क्यों चटखने लगी हैं दीवारें
क्यों सहमी खड़ी है हवाएँ शहर की
पंछी दरख्तों से घबराए है क्यों
फिर से जलाई है चिंगारी किसने
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
No comments:
Post a Comment