Sunday, July 27, 2014

दरारें

अभी तो हटाई थी हमने फफूंदी
है मरहम दरारों पर ताज़ा अभी
फ़िर क्यों चटखने लगी हैं दीवारें


क्यों सहमी खड़ी है हवाएँ शहर की
पंछी दरख्तों से
घबराए है क्यों
फिर से जलाई है चिंगारी किसने

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का