Tuesday, July 29, 2014

खुदा

खोजा जहाँ सारा
वो रहा जुदा
छुआ खुद को
मैं हुआ खुदा

Sunday, July 27, 2014

दरारें

अभी तो हटाई थी हमने फफूंदी
है मरहम दरारों पर ताज़ा अभी
फ़िर क्यों चटखने लगी हैं दीवारें


क्यों सहमी खड़ी है हवाएँ शहर की
पंछी दरख्तों से
घबराए है क्यों
फिर से जलाई है चिंगारी किसने

Friday, July 25, 2014

कसक

#१

मुस्कराते हैं क्यों ये ज़रुरत से ज्यादा
इन होठों का भी कुछ ईमान तो होगा

#२

बयाँ है अलग सा उन आँखों के नीचे
कसक झांकती है ठहाकों के पीछे

साथी

करे न करे हमको शामिल ख़ुशी में
पर आएंगे ग़म में तेरे बिन बुलाये


रहें ना रहें गर अंधेरों में साये
जुगनू मिलेंगे रास्तों को सजाये



Wednesday, July 23, 2014

राख

मरघट की राख
मरे हुए इंसान की
या मारे हुए पेड़ की

शायद पेड़ की राख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों 
मारा जलाया उसे
अकारण

या थी इंसान की आँख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों 
जलाया उसे अकारण 
वरना देती रोशनी
किसी नेत्रहीन को

Monday, July 21, 2014

सच

देखा सुना सब है माया
सच सुविधा का है जाया

पेड तोता

जंगल
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता
पर खाता दाना
मालिक का

जंगल
जंगल में पेड़
पेड़ गिरा
तोते ने देखा
गिरे पेड़ को
फिर मालिक को
कुल्हाड़ी लिए

जंगल
जंगल में टीवी
टीवी पर
तोते ने कहा
नहीं गिरा पेड़
था ही नहीं पेड़

जंगल
जंगल में बंदर
रहता था
पेड़ पर
वही पेड़ जो
था ही नहीं

जंगल
जंगल में प्राणी
बन्दर कूदा
कहा पेड़ तो था
कहा "पेड तोता"
तोता बोला
स्वाँग है

जंगल
जंगल में जज
मालिक बोला
हुई मानहानि
बंदर अंदर

जंगल
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता

Saturday, July 19, 2014

सय्यम

साँसों की मज़बूरी या आँखों की खुद्दारी
आँसू का बहना गवारा नहीं

सजाया है दर्द भी इनाम की तरह
ठुड्ढी का हिलना गवारा नहीं

तो यह न होता

आज अख़बार में छपा है
टीवी पर चर्चा भी हो रही है
मेरे बारे में
नहीं मेरे रेप के बारे में

कुछ लोग क्षोभित हैं
कुछ क्षोभ जता रहे हैं
कुछ कहते है सरकार है दोषी
पर मैं जानती हूँ सरकार नहीं थी वहाँ
सरकार कहीं नहीं थी
होती तो यह न होता



वो मेरा नाम नहीं लेते
रेप के बाद नहीं रहता नाम
न रहती है उम्र
बच्ची बन जाती है महिला
कोई कल नहीं होता
रह जाता है केवल एक कल
केवल एक कलंक

कुछ कहते हैं कोई और दोषी है
पर इसका पता एक ब्रेक के बाद चलेगा
तब तक आप विज्ञापन देखिये
रंगीले पानी का विज्ञापन
रंगीले पानी में आम नहीं है
पर विज्ञापन में आम है
एक अभिनेत्री भी है
वो आम नहीं है
शायद वो आम खा रही है
अभिनेत्रियां ऐसे ही खाती है
इसीलिए आम को भाती है

आम जो कभी कभी
मोमबत्तियाँ भी जला लेते हैं

विज्ञापन ख़त्म
चर्चा में नए लोग आ गए
पिछलों को जाना था दूसरे स्टूडियो
जहाँ से ये नए लोग आये है
ये कहते हैं समाज का दोष है
पर समाज कहाँ था
वहाँ नहीं था
होता तो यह न होता

अब चर्चा जोरों पर है
कुछ लोग क्रोधित हैं
कुछ क्रोध जता रहे हैं
कुछ चिल्ला रहे हैं
कुछ की नज़र टी आर पी पर है
यह चर्चा मेरे बारे में है
नहीं मेरे रेप के बारे में है
पर मैं कहाँ हूँ इस चर्चा में
मैं कभी नहीं होती
होती तो यह न होता




भिखारी

काँच के उस ओर खड़ा
वह जीव कौन सा है
दीखता मानव सा
डरावना भूखा

क्या सच में है भूखा
या स्वाँग है
दूँ या ना दूँ
छोटा है
कौन सा गुनाह

चलो बत्ती हरी हुई
चीख़ने लगी गाड़ियाँ
और उनके अंदर बैठे जीव
सारे मानव से
डरावने भूखे

Friday, July 18, 2014

बलिदान

नहीं होगा तम ख़त्म तारो के दम पर
सूरज को तिल तिल खोना ही होगा

कीचड के कतरों से कतराएं कब तक
ये मंदिर किसी को तो धोना ही होगा

Monday, July 14, 2014

कंधे

कंधे
चलते दौड़ते
थमे कुछ
चले लेकर
ठहरी साँसों को
लिपटा कर
लपटों में
फिर लगे
चलने दौड़ने
कंधे

सत्य

ऐ सत्य मैंने देखा है तुम्हें
जीवन की पहली किलकार में
और मृत्यु की ठहरती रफ़्तार में

सुख

साधन में सुख खोजता खुद ही खोता जाय
खुद में खोया साधु जो सुख में सो उतराय

एक परिभाषा कविता की

मिश्री मीठी तप्त अंगीठी
मरहम लेप कटु आक्षेप
तरल सतह की गूढ़ थाह
अल्प वाक्य अतिशय प्रभाव

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का