खोजा जहाँ सारा
वो रहा जुदा
छुआ खुद को
मैं हुआ खुदा
Tuesday, July 29, 2014
Sunday, July 27, 2014
दरारें
अभी तो हटाई थी हमने फफूंदी
है मरहम दरारों पर ताज़ा अभी
फ़िर क्यों चटखने लगी हैं दीवारें
क्यों सहमी खड़ी है हवाएँ शहर की
पंछी दरख्तों से घबराए है क्यों
फिर से जलाई है चिंगारी किसने
है मरहम दरारों पर ताज़ा अभी
फ़िर क्यों चटखने लगी हैं दीवारें
क्यों सहमी खड़ी है हवाएँ शहर की
पंछी दरख्तों से घबराए है क्यों
फिर से जलाई है चिंगारी किसने
Friday, July 25, 2014
Wednesday, July 23, 2014
राख
मरघट की राख
मरे हुए इंसान की
या मारे हुए पेड़ की
शायद पेड़ की राख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों
मारा जलाया उसे
अकारण
या थी इंसान की आँख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों
जलाया उसे अकारण
वरना देती रोशनी
किसी नेत्रहीन को
मरे हुए इंसान की
या मारे हुए पेड़ की
शायद पेड़ की राख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों
मारा जलाया उसे
अकारण
या थी इंसान की आँख
क्योंकि थी अशांत
नहीं समझ पाई क्यों
जलाया उसे अकारण
वरना देती रोशनी
किसी नेत्रहीन को
Monday, July 21, 2014
पेड तोता
जंगल
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता
पर खाता दाना
मालिक का
जंगल
जंगल में पेड़
पेड़ गिरा
तोते ने देखा
गिरे पेड़ को
फिर मालिक को
कुल्हाड़ी लिए
जंगल
जंगल में टीवी
टीवी पर
तोते ने कहा
नहीं गिरा पेड़
था ही नहीं पेड़
जंगल
जंगल में बंदर
रहता था
पेड़ पर
वही पेड़ जो
था ही नहीं
जंगल
जंगल में प्राणी
बन्दर कूदा
कहा पेड़ तो था
कहा "पेड तोता"
तोता बोला
स्वाँग है
जंगल
जंगल में जज
मालिक बोला
हुई मानहानि
बंदर अंदर
जंगल
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता
पर खाता दाना
मालिक का
जंगल
जंगल में पेड़
पेड़ गिरा
तोते ने देखा
गिरे पेड़ को
फिर मालिक को
कुल्हाड़ी लिए
जंगल
जंगल में टीवी
टीवी पर
तोते ने कहा
नहीं गिरा पेड़
था ही नहीं पेड़
जंगल
जंगल में बंदर
रहता था
पेड़ पर
वही पेड़ जो
था ही नहीं
जंगल
जंगल में प्राणी
बन्दर कूदा
कहा पेड़ तो था
कहा "पेड तोता"
तोता बोला
स्वाँग है
जंगल
जंगल में जज
मालिक बोला
हुई मानहानि
बंदर अंदर
जंगल
जंगल में तोता
उन्मुक्त तोता
Saturday, July 19, 2014
सय्यम
साँसों की मज़बूरी या आँखों की खुद्दारी
आँसू का बहना गवारा नहीं
सजाया है दर्द भी इनाम की तरह
ठुड्ढी का हिलना गवारा नहीं
आँसू का बहना गवारा नहीं
सजाया है दर्द भी इनाम की तरह
ठुड्ढी का हिलना गवारा नहीं
तो यह न होता
आज अख़बार में छपा है
टीवी पर चर्चा भी हो रही है
मेरे बारे में
नहीं मेरे रेप के बारे में
कुछ लोग क्षोभित हैं
कुछ क्षोभ जता रहे हैं
कुछ कहते है सरकार है दोषी
पर मैं जानती हूँ सरकार नहीं थी वहाँ
सरकार कहीं नहीं थी
होती तो यह न होता
टीवी पर चर्चा भी हो रही है
मेरे बारे में
नहीं मेरे रेप के बारे में
कुछ लोग क्षोभित हैं
कुछ क्षोभ जता रहे हैं
कुछ कहते है सरकार है दोषी
पर मैं जानती हूँ सरकार नहीं थी वहाँ
सरकार कहीं नहीं थी
होती तो यह न होता
वो मेरा नाम नहीं लेते
रेप के बाद नहीं रहता नाम
न रहती है उम्र
बच्ची बन जाती है महिला
कोई कल नहीं होता
रह जाता है केवल एक कल
केवल एक कलंक
कुछ कहते हैं कोई और दोषी है
पर इसका पता एक ब्रेक के बाद चलेगा
तब तक आप विज्ञापन देखिये
रंगीले पानी का विज्ञापन
रंगीले पानी में आम नहीं है
पर विज्ञापन में आम है
एक अभिनेत्री भी है
वो आम नहीं है
शायद वो आम खा रही है
अभिनेत्रियां ऐसे ही खाती है
इसीलिए आम को भाती है
आम जो कभी कभी
मोमबत्तियाँ भी जला लेते हैं
विज्ञापन ख़त्म
चर्चा में नए लोग आ गए
पिछलों को जाना था दूसरे स्टूडियो
जहाँ से ये नए लोग आये है
ये कहते हैं समाज का दोष है
पर समाज कहाँ था
वहाँ नहीं था
होता तो यह न होता
अब चर्चा जोरों पर है
कुछ लोग क्रोधित हैं
कुछ क्रोध जता रहे हैं
कुछ चिल्ला रहे हैं
कुछ की नज़र टी आर पी पर है
यह चर्चा मेरे बारे में है
नहीं मेरे रेप के बारे में है
पर मैं कहाँ हूँ इस चर्चा में
मैं कभी नहीं होती
होती तो यह न होता
भिखारी
काँच के उस ओर खड़ा
वह जीव कौन सा है
दीखता मानव सा
डरावना भूखा
क्या सच में है भूखा
या स्वाँग है
दूँ या ना दूँ
छोटा है
कौन सा गुनाह
चलो बत्ती हरी हुई
चीख़ने लगी गाड़ियाँ
और उनके अंदर बैठे जीव
सारे मानव से
डरावने भूखे
वह जीव कौन सा है
दीखता मानव सा
डरावना भूखा
क्या सच में है भूखा
या स्वाँग है
दूँ या ना दूँ
छोटा है
कौन सा गुनाह
चलो बत्ती हरी हुई
चीख़ने लगी गाड़ियाँ
और उनके अंदर बैठे जीव
सारे मानव से
डरावने भूखे
Friday, July 18, 2014
बलिदान
नहीं होगा तम ख़त्म तारो के दम पर
सूरज को तिल तिल खोना ही होगा
कीचड के कतरों से कतराएं कब तक
ये मंदिर किसी को तो धोना ही होगा
सूरज को तिल तिल खोना ही होगा
कीचड के कतरों से कतराएं कब तक
ये मंदिर किसी को तो धोना ही होगा
Monday, July 14, 2014
एक परिभाषा कविता की
मिश्री मीठी तप्त अंगीठी
मरहम लेप कटु आक्षेप
तरल सतह की गूढ़ थाह
अल्प वाक्य अतिशय प्रभाव
मरहम लेप कटु आक्षेप
तरल सतह की गूढ़ थाह
अल्प वाक्य अतिशय प्रभाव
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दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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क्यों है हक़ गौतम ऋषि को क्यों मुझे अभिशाप दें क्यों इन्द्र को सब देव पूजें क्यों मेरा अपमान हो क्यों तकूँ मैं राह रघु की क्यों मेरा ...
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खुदा ने पूछा मैं कौन "मैं" ने व्याख्या दी शास्त्र की, तर्क दिए विज्ञान के और खुदा हँसने लगा खुदा ने पूछा मैं कौन मैं शांत रहा ...
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तेरी कुर्बानी का रहेगा एहसान, ऐ दोस्त मैंने खोई कुछ ही दौलत, पर तूने यारी