Sunday, February 14, 2021

डर

तेरे सच की चिंगारी से
उसका महल जो पिघल रहा है

तेरे सवालों के जुगनुओं से
उसका अँधेरा जो बुझ रहा है

वो तुझे डराएगा
वो डर जो रहा है 

Friday, February 5, 2021

मजबूरी

मत पूछो 
वो क्यों चुप थे
जब बोलना था
मजबूरी होती है
मशहूरी की

मत पूछो
क्यों ट्वीट पड़े
जब चुप रहना था
मजबूरी होती है
मशहूरी की

तुम खिलाड़ी नहीं
तुम कलाकार नहीं
तुम नहीं समझोगे
मजबूरी होती है
मशहूरी की

Thursday, February 4, 2021

साहब

खेतों में कील बोआते हो
खौफ की फसल उगाते हो
फिर सीने का नाप गिनाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

एक मजाक से मर जाते हो
एक कटाक्ष से कट जाते हो
फिर मन की बात बताते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

चीन को झूला झुलाते हो
नेहरू को गरियाते हो
फिर हैशटैग जंग चलाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

शिक्षा बजट घटाते हो
पेट्रोल गगन छुआते हो
फिर अच्छे दिन दिखलाते हो
साहब तुम खूब रिझाते हो

Wednesday, February 3, 2021

सवाल

रल
मादक
मोहक
होता है
पर जवाब
मिथ्या भ्रामक
होता है

कठिन
कठोर
कुरूप
होता है
पर सवाल
पथ प्रदर्शक
होता है

सवाल
की ऊंगली ही
पहुँचाती है
सत्य तक


Tuesday, February 2, 2021

मंच

रिक्त में 
व्यक्त
विस्तृत
और विलीन
होता हूँ
मैं

इस दरम्यान
रिक्त से
अतिरिक्त 
होने का
दम्भ
भरता हूँ
मैं

समय और 
स्थान के
रिक्त
रंगमंच पर
अभिनय
करता हूँ
मैं

और
मंच से परे
उदासीन
कौतूहल से
अपना अभिनय
निरखता हूँ
मैं

Monday, February 1, 2021

नदी

पानी नहीं मैं
जो बह रहा
सतत 
समय सा

नदी हूँ मैं
जो ठहरी
सतत
क्षण सी

पानी का
उठता गिरता
अबोध
कोलाहल 
समाए
स्थिर
प्रज्ञ
शांत
नदी हूँ 
मैं

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का