तेरे सच की चिंगारी से
उसका महल जो पिघल रहा है
उसका महल जो पिघल रहा है
तेरे सवालों के जुगनुओं से
उसका अँधेरा जो बुझ रहा है
वो तुझे डराएगा
वो डर जो रहा है
वो डर जो रहा है
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का