कोख़ में उपजा पहला कम्पन
थम रहे हृदय का अंतिम स्पंदन
मैं शून्य शून्य से रचित अनंत
मैं असंख्य सूर्य आच्छादक तम
मैं गूँज ओ३म्
मैं मौन व्योम
मैं भ्रांत सृजन
मैं सत्य बोध
मैं सत्य
मैं बोध
मैं
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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