एक बूँद गिरी
पत्ता राख हो गया
शहर में
कहते हैं
आखिरी आँसू था
आखिरी गौरैया का
अब गौरैया नहीं होगी
न ही आँसू गिरेगा
शहर में
Tuesday, December 12, 2017
Saturday, November 25, 2017
ऑर्डर ऑर्डर
मृत्यु
एक न्यायमूर्ति की
व्यवस्था कहती है
हृदय गतिहीन हुआ था
परंतु व्यवस्था
जीवित थी
गतिमान थी
बुलेट ट्रेन सी
आटो रिक्शा में अस्पताल
अस्पताल से अस्पताल
पोस्ट-मार्टम
शव के शहर से दूर
शव के पिता के गांव
शव को पहुँचाया
फिर दम लिया
व्यवस्था ने
व्यवस्था
तत्पर थी
तत्परता से भूल गई
परिवार को बताना
कहते हैं
न्यायमूर्ति दोषी थे
सौ करोड़
ठुकराए थे
सजा मिली शायद
न्याय हुआ शायद
न्याय
जीवित रहा
गतिमान रहा
बुलेट ट्रेन सा
तीन सप्ताह
आरोपी बरी
केस समाप्त
ऑर्डर ऑर्डर
और डर
और डर
अब हिम्मत नहीं होगी
कोई आरोप करे
आरोपी पर
आरोपी
देश भक्त है
राम भक्त है
देश में
राम राज्य लाएगा
देश सारा
अयोध्या बनेगा
सभी खुश होंगे
रावण मरेगा
और कोई नहीं मरेगा
कोई मारा नहीं जायेगा
व्यवस्था
जीवित होगी
तत्पर होगी
न्याय
जीवित होगा
तत्पर होगा
जय श्री राम
एक न्यायमूर्ति की
व्यवस्था कहती है
हृदय गतिहीन हुआ था
परंतु व्यवस्था
जीवित थी
गतिमान थी
बुलेट ट्रेन सी
आटो रिक्शा में अस्पताल
अस्पताल से अस्पताल
पोस्ट-मार्टम
शव के शहर से दूर
शव के पिता के गांव
शव को पहुँचाया
फिर दम लिया
व्यवस्था ने
व्यवस्था
तत्पर थी
तत्परता से भूल गई
परिवार को बताना
कहते हैं
न्यायमूर्ति दोषी थे
सौ करोड़
ठुकराए थे
सजा मिली शायद
न्याय हुआ शायद
न्याय
जीवित रहा
गतिमान रहा
बुलेट ट्रेन सा
तीन सप्ताह
आरोपी बरी
केस समाप्त
ऑर्डर ऑर्डर
और डर
और डर
अब हिम्मत नहीं होगी
कोई आरोप करे
आरोपी पर
आरोपी
देश भक्त है
राम भक्त है
देश में
राम राज्य लाएगा
देश सारा
अयोध्या बनेगा
सभी खुश होंगे
रावण मरेगा
और कोई नहीं मरेगा
कोई मारा नहीं जायेगा
व्यवस्था
जीवित होगी
तत्पर होगी
न्याय
जीवित होगा
तत्पर होगा
जय श्री राम
Sunday, November 12, 2017
Thursday, October 19, 2017
दिवाली
हर वर्ष
क्यों हो रहा
रावण दहन
राम आगमन
एक बार ही
क्यों न हो
असुर तमाम
बसें राम
क्यों न हो
एक बार दशहरा
क्यों न हो
हर रोज़ दिवाली
क्यों हो रहा
रावण दहन
राम आगमन
एक बार ही
क्यों न हो
असुर तमाम
बसें राम
क्यों न हो
एक बार दशहरा
क्यों न हो
हर रोज़ दिवाली
Friday, October 13, 2017
Sunday, October 1, 2017
महाकबर
मल नालों से
सटे सँकरे
टिन के डिब्बों
में रहती
महानगर की
महाकबर की
लाशें
सटे सँकरे
टिन के डिब्बों
में रहती
महानगर की
महाकबर की
लाशें
ट्रफिक में
एम्बुलेंस सी
अटकी हैं
इनकी सांसे
दम लेंगी
दम टूटने पर
गिर कर
ट्रेन से
डूब कर
मैनहोल में
लाशें
एम्बुलेंस सी
अटकी हैं
इनकी सांसे
दम लेंगी
दम टूटने पर
गिर कर
ट्रेन से
डूब कर
मैनहोल में
लाशें
बस-ट्रेन में
ईसा सी
लटकी हुई
दौड़ती जा रही
भगदड़ में जीती
भगदड़ में मरती
लाशें
ईसा सी
लटकी हुई
दौड़ती जा रही
भगदड़ में जीती
भगदड़ में मरती
लाशें
Saturday, September 23, 2017
दूसरा
नहीं कर सकता
प्यार खुद से मैं
कर घृणा उससे
उत्थान नहीं मेरा
उसके पतन से
वह "दूसरा"
साया है मेरा ही
प्यार खुद से मैं
कर घृणा उससे
उत्थान नहीं मेरा
उसके पतन से
वह "दूसरा"
साया है मेरा ही
Tuesday, August 29, 2017
क्षितिज
क्षितिज के इस पार
आरंभ
आकार
स्थान
समय
शोर
ऊर्जा
अंत
क्षितिज के उस पार
अंत
निराकार
शून्य
शाश्वत
मौन
शीत
नवारंभ
Friday, August 18, 2017
Monday, August 14, 2017
Tuesday, August 8, 2017
मैं
तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे नाम से
पर मैं मेरा नाम नहीं
हो सकता था
कुछ और भी यह नाम
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे चेहरे से
या आकार, आवाज़ से
पर मैं मेरा चेहरा नहीं
मैं यह आकार, आवाज़ नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे विचार से
या मूल्यों, भावों से
पर मैं मेरे विचार नहीं
मैं यह मूल्य, भाव नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम पूछ रहे हो
फिर मैं क्या हूँ
कौन हूँ
जान लोगे तुम
जब जान लोगे
तुम क्या हो
कौन हो
तुम भी नहीं
तुम्हारा नाम
या वह तमाम
जिससे जानता हूँ
मैं तुम्हें
मैं हूँ
तुम वही हो
एक हूँ
एक हो
निर्गुण
निराकार
निराभाव
निर्विचार
निरंतर
एक
शायद मेरे नाम से
पर मैं मेरा नाम नहीं
हो सकता था
कुछ और भी यह नाम
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे चेहरे से
या आकार, आवाज़ से
पर मैं मेरा चेहरा नहीं
मैं यह आकार, आवाज़ नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे विचार से
या मूल्यों, भावों से
पर मैं मेरे विचार नहीं
मैं यह मूल्य, भाव नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं
तुम पूछ रहे हो
फिर मैं क्या हूँ
कौन हूँ
जान लोगे तुम
जब जान लोगे
तुम क्या हो
कौन हो
तुम भी नहीं
तुम्हारा नाम
या वह तमाम
जिससे जानता हूँ
मैं तुम्हें
मैं हूँ
तुम वही हो
एक हूँ
एक हो
निर्गुण
निराकार
निराभाव
निर्विचार
निरंतर
एक
Sunday, June 25, 2017
देशभक्त
ऐसे जम कर हो रहा "जालिम" का प्रतिकार
"देशभक्त" फूँक रहे हैं देखो अपना ही घरबार
"देशभक्त" फूँक रहे हैं देखो अपना ही घरबार
ऐसे सर चढ़ बोल रहा स्व-शुद्धि का भूत
मल रहे हैं देह पर स्व-अस्थियों की भभूत
मल रहे हैं देह पर स्व-अस्थियों की भभूत
Tuesday, May 2, 2017
Wednesday, April 19, 2017
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दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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क्यों है हक़ गौतम ऋषि को क्यों मुझे अभिशाप दें क्यों इन्द्र को सब देव पूजें क्यों मेरा अपमान हो क्यों तकूँ मैं राह रघु की क्यों मेरा ...
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खुदा ने पूछा मैं कौन "मैं" ने व्याख्या दी शास्त्र की, तर्क दिए विज्ञान के और खुदा हँसने लगा खुदा ने पूछा मैं कौन मैं शांत रहा ...
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तेरी कुर्बानी का रहेगा एहसान, ऐ दोस्त मैंने खोई कुछ ही दौलत, पर तूने यारी