Tuesday, August 29, 2017

क्षितिज


क्षितिज के इस पार
आरंभ
आकार
स्थान
समय
शोर
ऊर्जा
अंत


क्षितिज के उस पार
अंत
निराकार
शून्य
शाश्वत
मौन
शीत
नवारंभ

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का