Tuesday, October 20, 2015

भारत - ‎विडम्बना‬

(१)
मुहब्बत मुफ़लिसी से है इतनी मुझे
उलझा लिया है अपने को खुद से

(२)
है कैसा नशा दर्द का भी अजब सा
घावों को अपने हरा रख रहा हूँ


(३)
सोचूंगा कल की कभी और यारो
कोस लेने दो पहले मुझे बीते कल को

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का