Thursday, October 29, 2015

नव देशभक्त


नव देशभक्त
करते घृणा
शत्रु से इतनी

भारत को भी
बनाएँगे
शत्रु सा

पूरा हिन्दू
पूरा पाक
एकरंगी नारंगी
इंद्र धनुष

बहेगी बयार
नाथू की महान
मिटा गंध
बौने गाँधी की

लेंगे बदला
कल के कथित
अन्याय का
दे तिलांजलि
कल की

बढ़ो बनाओ
नव भारत
देश सख्त
ऐ देश भक्त

Thursday, October 22, 2015

बल्लभगढ़ की विजया दषमी

जलेंगे आज
झूठे राम के हाथों
झूठे पुतले
खोखले बेजान

जले थे परसों
सच्चे रावण के हाथों
दो पुतले सच्चे
जिन्दा बच्चे

क्या चलेंगे
मेरे साथ
बल्लभगढ़
मनाने
विजया दषमी

Tuesday, October 20, 2015

भारत - ‎विडम्बना‬

(१)
मुहब्बत मुफ़लिसी से है इतनी मुझे
उलझा लिया है अपने को खुद से

(२)
है कैसा नशा दर्द का भी अजब सा
घावों को अपने हरा रख रहा हूँ


(३)
सोचूंगा कल की कभी और यारो
कोस लेने दो पहले मुझे बीते कल को

Sunday, October 18, 2015

शैतान

बैठा था शैतान भीतर जब मैं था जग से खफा
जग बनी जन्नत जो मैंने खुद से ही कर ली वफ़ा

Saturday, October 17, 2015

सोने की चिड़िया

ओ सोने की चिड़िया
तेरे बच्चे क्यों भूखे सोते हैं

मंगल तक जा पहुंची तू
वो तारे क्यों तक सोते हैं

उत्तर प्रदेश


बद-किस्मत प्रदेश है कितना
विचलित धर्म बवाल पर
मौन निस्तब्ध सारे क्यों ज्ञाता
रोजी भूख सवाल पर

 
मानव मानव से डरता लड़ता
नेता के निर्मित जाल पर
नहीं खौलता खून हमारा
बद से बदतर हाल पर

Friday, October 9, 2015

चार कविताएँ


चार कविताएँ
एक शब्द की


जीवन
बोध
मृत्यु
मैं


एक कविता
चार शब्द की

कविता

शब्द
से सार
से भाव
से सत्य
कुरेदती
कविता

खेल

खोज ले अनंत
अंत के पहले
है वही खिलाड़ी
जीवन खेल का

Sunday, October 4, 2015

आदमी

सच है अलग है आदमी
देखा है कभी जानवर को
अपनों के शिकार पर?

Friday, October 2, 2015

छलावा

चाहा बिखेरें रौशनी इस शहर में
खबर क्या उन्हें है अँधेरे की लत

शीशा बदल कर जो इतरा रहे हैं
नवाक़िफ़ न ऐसे बदलती है सूरत

छुपाये हैं धब्बे चमक से पराई
शातिर है चंदा छलावे की मूरत

(11-Oct-14)

डू यू लव मी

वो इकलौती है
हँसती जो
मेरे अच्छे बुरे
हर लतीफ़े पर

वो इकलौती है
इंतजार करती
मेरे फोन का
हर उड़ान के
पहले और बाद

वो इकलौती है
डांटती माँ सी
और हक जताती
जैसे बेटी हो

वो इकलौती है
कहती जो "नो"
पूँछता मैं जब
"डू यू लव मी"

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का