Tuesday, February 10, 2015

विनय

रहना ज़मीं पे बन्दे उड़ना है आस्माँ तो
मिट्टी में मिट गया वो करता रहा गुमाँ जो

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का