खुदा ने पूछा
मैं कौन
मैं कौन
"मैं" ने
व्याख्या दी
शास्त्र की,
तर्क दिए
विज्ञान के
और खुदा
हँसने लगा
खुदा ने पूछा
मैं कौन
मैं कौन
मैं शांत रहा
और खुदा हो गया
और खुदा हो गया
#१
धूप धूल
पग शूल छिली
सतत अथक
अनवरत् चली
अब लो ठहर
तुम एक पहर
पोंछ घाम
कुछ लो विराम
खुद को निहार
लो खुदी निखार
कुछ हुनर सँवार
करो खुद से प्यार
एक नई डगर
अब नया सफर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
अपनी ही लौ
हो जा प्रखर
किरण नवजात
काट नाभि-नाल
पृथक हुई प्रकाश से
भाने लगा किरण को
भान किरण होने का
भान पृथक होने का
भाने लगी किरण को
अन्य किरणें बड़ी
उनका साया बड़ा
अब बढ़ चली किरण
हर्ष, द्वेष, भोग की होड़ में
और फैलने लगा साया
फैलता गया बड़ा साया
और ढकता गया
बड़ी किरण को
अब फैले बड़े साये में
सिमटी बड़ी किरण है
खोज रही प्रकाश को
क्या उतरेगी बड़ी किरण
अपनी ही छोटी नाभि में
और होगी एक प्रकाश से
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का