Tuesday, August 29, 2017

क्षितिज


क्षितिज के इस पार
आरंभ
आकार
स्थान
समय
शोर
ऊर्जा
अंत


क्षितिज के उस पार
अंत
निराकार
शून्य
शाश्वत
मौन
शीत
नवारंभ

Friday, August 18, 2017

शब्द

हे ईश्वर
मानव से तू
शब्द छीन ले

न शब्द हों
न अलग भाषाएँ
न अलग पहचानें
न अलग मानव

शब्द छीन ले
मानव से तू
हे ईश्वर

खुदा

खुदी को खुद से कर जुदा
खुदा खुद ही से है जुड़ा

Monday, August 14, 2017

गोरखपुर के कान्हा

बिलख रहे वसुदेव देवकी
भ्रष्ट कंस संहार करो
गोरखपुर के कान्हाओं का
हे गोरख उद्धार करो 

Tuesday, August 8, 2017

मैं

तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे नाम से
पर मैं मेरा नाम नहीं
हो सकता था
कुछ और भी यह नाम
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं


तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे चेहरे से
या आकार, आवाज़ से
पर मैं मेरा चेहरा नहीं
मैं यह आकार, आवाज़ नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं


तुम मुझे जानते हो
शायद मेरे विचार से
या मूल्यों, भावों से
पर मैं मेरे विचार नहीं
मैं यह मूल्य, भाव नहीं
हो सकते थे
कुछ और भी यह सब
पर मैं मैं ही रहता
कुछ और नहीं


तुम पूछ रहे हो
फिर मैं क्या हूँ
कौन हूँ
जान लोगे तुम
जब जान लोगे
तुम क्या हो
कौन हो
तुम भी नहीं
तुम्हारा नाम
या वह तमाम
जिससे जानता हूँ
मैं तुम्हें


मैं हूँ
तुम वही हो
एक हूँ
एक हो
निर्गुण
निराकार
निराभाव
निर्विचार
निरंतर
एक

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का