कलियुग रावण महिमा अद्भुद, हार गए श्री राम
मन मंदिर मर्यादा हर ली, ले पुरुषोत्तम नाम
(१५-अप्रैल-२०१६)
Sunday, May 1, 2016
गीली रेत
भारत भक्ति
सलीम खान अचरज में है यह कविता मैंने कब बुन ली
नहीं कही जो बातें मैंने भक्तों ने वो कैसे सुन ली
ज़ी छी टीवी के करतब से वैश्या हर शर्मिंदा है
सुपारी वीडियो चलाता कहता गन्दा है पर धंधा है
दाल के दर्शन दुर्लभ पर तुम दंगे कलह लगाते हो
हिन्दु मुस्लिम काट बाँट सत्ता की रोटी खाते हो
भगवा भगत अवरोही कट्टर, हिंदू हिंद बदनाम करें
आओ जोड़े जन मानस मन, भू भारत के भक्त बनें
(सलीम खान के मत्थे मढ़ी गई निम्न "कविता" के प्रत्युत्तर स्वरुप, २०-मार्च-२०१६ )
नहीं कही जो बातें मैंने भक्तों ने वो कैसे सुन ली
ज़ी छी टीवी के करतब से वैश्या हर शर्मिंदा है
सुपारी वीडियो चलाता कहता गन्दा है पर धंधा है
दाल के दर्शन दुर्लभ पर तुम दंगे कलह लगाते हो
हिन्दु मुस्लिम काट बाँट सत्ता की रोटी खाते हो
भगवा भगत अवरोही कट्टर, हिंदू हिंद बदनाम करें
आओ जोड़े जन मानस मन, भू भारत के भक्त बनें
(सलीम खान के मत्थे मढ़ी गई निम्न "कविता" के प्रत्युत्तर स्वरुप, २०-मार्च-२०१६ )

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दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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