Sunday, September 20, 2015

महबूब

महबूब हो तो मेरे साये सा
सिमटता मुझमें कड़ी धूप में
घनी रात में समा लेता मुझे

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का