Sunday, October 5, 2014

नफ़रतें

#१
थे काँटे उगाए हिफ़ाज़त को जिसकी
क्यों भेदा क्यों छेदा उसी पँखुड़ी को

#२
थी जिससे निभाई नफ़रतें उम्र भर
क्यों हँसता रहा आईने से वो ज़ालिम

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का