Friday, October 24, 2014

करवा का चाँद

चाँद बेरहम था "करवा" रहा इंतज़ार उन्हें
और हम बेशरम करते रहे दीदार-ए-चाँद

Wednesday, October 22, 2014

शुभ दीपावली

जल धूप अगन पग तप्त नगन
छत सखत गगन अध ढके बदन

हर पर्व सफल गर तृप्त उदर
हर दीप जगन गर खिले अधर

Wednesday, October 8, 2014

ओ गिरते पत्ते

ओ गिरते पत्ते
कैसा था वह क्षण
जब तुम अलग हुए
पेड़ से

क्या तुम सूख चुके थे
और इंतज़ार में गिरने के
या थे हरे जीवन भरे
जीने को लालायित

क्या अन्य पत्तों को होता है
दुःख खोने का हरे पत्तों को
या खोने का हर पत्ते को
या होते हैं वह व्यस्त

क्या तुम भी थे व्यस्त
स्पर्धा में जीवन की
बटोरते किरणें
जुटाते आहार

क्या हुआ उस क्षण
बंद हुई सिर्फ साँसें
या तजा तुमने
आत्मा को

क्या सच होती है आत्मा
या है मिथ्या भ्रम
तुष्टि के लिए
पत्ते के अहम की

क्या मन था परेशान
की गिरोगे धरा पर
उड़ जाओगे हवा में
या बनोगे भक्ष्य पशु का

स्वर्ग है कौन सी अवस्था
क्या सच होते हैं स्वर्ग नर्क
या भ्रांति अच्छे पत्तों की
और भय बुरे पत्तों का

ओ गिरते पत्ते
कैसा था वह क्षण
जब तुम अलग हुए
पेड़ से

बापू की लाठी

बापू तेरी लाठी दे दे
चलूँ कूच ले उसे अथक
करूँ विफल जो शक्ति धूर्त
रक्त रक्त से करे पृथक

बापू तेरी लाठी दे दे
मानवता का हो सम्बल
दीन हीन ना रहे महीन
मूक मुखर हो अबल प्रबल

Tuesday, October 7, 2014

मन मेरा

विचारों का झरना
सवालों की झंझा

सपनों का जंगल
भावों की दलदल

अहम् का टीला
वहम् की लीला

एक सृष्टि समेटे
मन है मेरा

Sunday, October 5, 2014

नफ़रतें

#१
थे काँटे उगाए हिफ़ाज़त को जिसकी
क्यों भेदा क्यों छेदा उसी पँखुड़ी को

#२
थी जिससे निभाई नफ़रतें उम्र भर
क्यों हँसता रहा आईने से वो ज़ालिम

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का