Monday, April 21, 2014

एक वो और एक सब

रब की जय औ राम हाफ़िज़ आओ मिलकर हम कहें
एक वो और एक सब फिर क्यों हम आपस में लड़ें
धर्म का यह मर्म जितना गूढ़ उतना ही सरल
मोड़ दें अब रुख हवा का जो हैं फैलाती गरल
साल सड़सठ बाद भी ना रुका गर यह चलन
क्या उठे फिर क्या बढ़े यदि हो रहा मानव हनन

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का