Monday, April 21, 2014

दाग़


लहू लाल
बहा गिरा 
थमा जमा
बना दाग़ ।
 
#2

धर्म-छल से छली
अधर्म-बल की बलि
कटी दबी ज़बान पर
लगा दाग़ ।
 
#3

रुके अथक प्रवाह सा
गुनाह के ग़वाह सा
ज़िद्दी ढ़ीठ सा
खड़ा दाग़ ।

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का