धारा वही नैया नयी
पाएंगे कैसे साहिल सही
Wednesday, April 23, 2014
विनय
झुक जा ऐ बन्दे ये अच्छी निशानी
होते नहीं नत खाली जो मस्तक
ठोकर से ना कर परहेज़ इतना
उठकर तू लिख़ दे ज़माने की किस्मत
होते नहीं नत खाली जो मस्तक
ठोकर से ना कर परहेज़ इतना
उठकर तू लिख़ दे ज़माने की किस्मत
Tuesday, April 22, 2014
अंतर के अंतर
न रोको दहकते मरुस्थल की बारिश
नफरत के टीले पिघलना ज़रूरी
न बाँधो महक आस्था की परस्पर
है अंतर के अंतर का भरना जरूरी
नफरत के टीले पिघलना ज़रूरी
न बाँधो महक आस्था की परस्पर
है अंतर के अंतर का भरना जरूरी
तिनके
ये तिनकों की बढ़ती हिमाकत तो देखो
हवाओं के रुख भी बदलने लगे हैं
अहम् से जो धरते थे पग अम्बरों पर
धरती के कम्पन से डरने लगे हैं
हवाओं के रुख भी बदलने लगे हैं
अहम् से जो धरते थे पग अम्बरों पर
धरती के कम्पन से डरने लगे हैं
Monday, April 21, 2014
तेरा रब मेरा रब
#1
पहले पहली साँस से, क्या था धर्म मेरा
बाद आखिरी साँस के, क्या होगा मज़हब तेरा
#2
तज रोष द्वेष आवेश समझ
जो तेरा रब सो ही मेरा रब
पहले पहली साँस से, क्या था धर्म मेरा
बाद आखिरी साँस के, क्या होगा मज़हब तेरा
#2
तज रोष द्वेष आवेश समझ
जो तेरा रब सो ही मेरा रब
एक वो और एक सब
रब की जय औ राम हाफ़िज़ आओ मिलकर हम कहें
एक वो और एक सब फिर क्यों हम आपस में लड़ें
धर्म का यह मर्म जितना गूढ़ उतना ही सरल
मोड़ दें अब रुख हवा का जो हैं फैलाती गरल
साल सड़सठ बाद भी ना रुका गर यह चलन
क्या उठे फिर क्या बढ़े यदि हो रहा मानव हनन
एक वो और एक सब फिर क्यों हम आपस में लड़ें
धर्म का यह मर्म जितना गूढ़ उतना ही सरल
मोड़ दें अब रुख हवा का जो हैं फैलाती गरल
साल सड़सठ बाद भी ना रुका गर यह चलन
क्या उठे फिर क्या बढ़े यदि हो रहा मानव हनन
जुगलबंदी अभिषेक दुबे के साथ
हम दो "फेसबुक मित्रों" ने जब अनायास ही राजनीति पर यह संवाद छेड़ा था तब यह कल्पना नहीं थी की वह एक दिलचस्प जुगलबंदी का रूप ले लेगी। मैं अभिषेक दुबे का धन्यवाद प्रकट करना चाहता हूँ क्योंकि अनजाने में उन्होंने मेरी कविता लिखने की रूचि को पुनर्जागृत कर दिया है :)
अभिषेक
वोट इतना दीजिए जा में कमल खिल जाये,
अरविन्द बाबू खाँसते रहें, पर जनता नरेन सुहाये!!
अभिषेक
प्रशंसक अरविन्द के, पन्डित राकेश कविराये
पर जनमानस के जनहित का, नरेन ही सकल उपाय !!
अभिषेक
उनचास दिवस और पंद्रह बरस बोले मेरी वाणि ,
किसका धोखा, कौन मूढ, सर्वविदित ये कहानी !!
अभिषेक
खाँस खाँस के खास बने जो गया मझधार से भाग,
उसके गरल को विचार लो जो स्वयं ही विषधर नाग !!
अभिषेक
क्षोभित असहाय अग्रज से हुए नीलकंठ बदनाम
तजता हूं ये विवाद अब कर कोटि कोटि प्रणाम !!!
अभिषेक
जड़मति अभिषेक है, जो भँइसन बिन बजाये
दोषि को निर्दोषि माने, तजे भगोड़ा बन जाये !!!
अभिषेक
तजो द्वेष उन्माद सखा तुम , मोदि वेग प्रचन्ड
नमो नमो ही जप रहा, हर गाँव जिला प्रखण्ड !!
अभिषेक
कुंठित विचलित ह्रदय, विस्मित उग्र विचार
मानव को दानव कहें, दिग्भ्रमित दुष्प्रचार ? ?
अभिषेक
सत्य सनातन ज्ञान हो, सुमति युक्त "विवेक"
नमो रहे या "आप" रहो, सुशील ही हो "अभिषेक"
अभिषेक
झाड़ू लेकर आये थे, बन के पालनहार
जगी सुबुद्धी एैसी, स्वयं का हुअा संहार ??
अभिषेक
व्यूह तोड़ता है अर्जुन, योद्धा वीर महान,
रिपु मन भाये पीठ दिखाये, जो आपका अभिमान!! (Ripu ::Congress)
अभिषेक
मनुज नही निर्मम इतना, पीड़ा पाये उमंग,
आप पुरुषार्थी ज्ञानी, क्यों समझे हमे भुजंग??
अभिषेक
करबद्ध नमन अभिनन्दन, श्रेष्ठ कवि राकेश का,
हिन्दी ही है मानक,अखंड भारत के परिवेश का !!!
अभिषेक
वोट इतना दीजिए जा में कमल खिल जाये,
अरविन्द बाबू खाँसते रहें, पर जनता नरेन सुहाये!!
स्वयं
इतना ही मत दीजिये कि कमल न उन्मत होय
कुर्सी मिले नरेन को पर नकेल अरविन्द की होय
अभिषेक
प्रशंसक अरविन्द के, पन्डित राकेश कविराये
पर जनमानस के जनहित का, नरेन ही सकल उपाय !!
स्वयं
नहीं नरेन् उपाय मूढ़ सब धोखा है
झाड़ू दो चलाय अभी भी मौका है
अभिषेक
उनचास दिवस और पंद्रह बरस बोले मेरी वाणि ,
किसका धोखा, कौन मूढ, सर्वविदित ये कहानी !!
स्वयं
विष घोले जो विश्व में, छल को कहें विकास
ख़ास खा रहा आम है, आम रहा है खाँस
अभिषेक
खाँस खाँस के खास बने जो गया मझधार से भाग,
उसके गरल को विचार लो जो स्वयं ही विषधर नाग !!
स्वयं
विकृत विचित्र विडंबना, सोचूँ मैं असहाय
विषधर कहें नीलकंठ को, निश्चर पूजे जाए
अभिषेक
क्षोभित असहाय अग्रज से हुए नीलकंठ बदनाम
तजता हूं ये विवाद अब कर कोटि कोटि प्रणाम !!!
स्वयं
विवाद नहीं संवाद है, जो तजे भगोड़ा कहलाये
हर हर को बदनाम करे, औ दोष केजरी पाये
अभिषेक
जड़मति अभिषेक है, जो भँइसन बिन बजाये
दोषि को निर्दोषि माने, तजे भगोड़ा बन जाये !!!
अभिषेक
तजो द्वेष उन्माद सखा तुम , मोदि वेग प्रचन्ड
नमो नमो ही जप रहा, हर गाँव जिला प्रखण्ड !!
स्वयं
द्वेष बैर उन्माद देन है नमो रूप एक दानव की
जहर, कहर को लहर बताते नहीं फ़िक्र जिन्हें मानव की
अभिषेक
कुंठित विचलित ह्रदय, विस्मित उग्र विचार
मानव को दानव कहें, दिग्भ्रमित दुष्प्रचार ? ?
स्वयं
भ्रम दिग्भ्रम में माहिर शख्स शाह अमित बहुचर्चित
बदले को बदलाव समझते दंगों से अति परिचित
अभिषेक
सत्य सनातन ज्ञान हो, सुमति युक्त "विवेक"
नमो रहे या "आप" रहो, सुशील ही हो "अभिषेक"
स्वयं
नहीं "सुशील" "नरेन्" वो, जिनका है अभिषेक
कथनी करनी के अंतर से, कहलाये जो फेक
स्वयं
एक ओर दुष्पाप है एक ओर है आप
झाड़ू लाओ साफ़ करो छोडो मोदी जाप
अभिषेक
झाड़ू लेकर आये थे, बन के पालनहार
जगी सुबुद्धी एैसी, स्वयं का हुअा संहार ??
स्वयं
फँसा रहे वह दिल्ली में, चाहते काक समूह
जीतेगा वह देश सकल, जिसने तोड़ा ब्यूह
अभिषेक
व्यूह तोड़ता है अर्जुन, योद्धा वीर महान,
रिपु मन भाये पीठ दिखाये, जो आपका अभिमान!! (Ripu ::Congress)
स्वयं
कलयुगी कुरुक्षेत्र का रणछोड़ है औ पार्थ वो ,
झेलता अपमान, पीड़ा जूझता निस्वार्थ वो
स्वयं
हो रहे गदगद जो उसके फूले आहत गाल पर ,
कल उन्हीं की पीढ़ियाँ फूलेंगी उस लाल पर
अभिषेक
मनुज नही निर्मम इतना, पीड़ा पाये उमंग,
आप पुरुषार्थी ज्ञानी, क्यों समझे हमे भुजंग??
स्वयं
धन्य तुमको मित्र इतने प्यार सैयम साथ का,
मन कहे चलता रहे यह सिलसिला संवाद का,
आओ अब विराम दें हम इस सुखद प्रयोग को,
छेड़ेंगे यह तार फिर से जब नया संयोग हो
अभिषेक
करबद्ध नमन अभिनन्दन, श्रेष्ठ कवि राकेश का,
हिन्दी ही है मानक,अखंड भारत के परिवेश का !!!
दाग़
लहू लाल
बहा गिरा
थमा जमा
बना दाग़ ।
#2
धर्म-छल से छली
अधर्म-बल की बलि
कटी दबी ज़बान पर
लगा दाग़ ।
#3
रुके अथक प्रवाह सा
गुनाह के ग़वाह सा
ज़िद्दी ढ़ीठ सा
खड़ा दाग़ ।
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दस्तक
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