Thursday, July 25, 2019

खेल

क्षण
विशाल वृक्ष सा
अथाह ब्रह्म में
फैलाए अनगिनत
टहनियां

समय
अनवरत टहनियों सा
बिखेरता स्मृतियों के
तिनके

तिनके समेट
तनिक तनिक
तन-घोसला बनाती
रूह

खेल
खेल रहे
निरंतर
रूह
और
ब्रह्म

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का