Sunday, February 24, 2019

सियासत

सोचा लिखूँ कुछ
सियासत पर

पर
सियाही फिसल कर
धब्बा छोड़ गई

शायद
कागज़ बिका था
या उम्मीद मरी थी

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का