ढोता बोझ
दो बार
सुबह स्टेशन
शाम परिवार
बोझ तले
बोध कहाँ
गरीब का
तिरंगे से
छांव चुराना
तिरंगे का
अपमान है
अपराध है
बोझ तले
बोध कहाँ
इकहत्तर
वर्षों में
गरीब के लिए
कानून है
न्याय नहीं
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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