Thursday, July 19, 2018

आखिर

#१

वो आदमी
जिसकी जूठन पर
डकार ले ले
शहर सारा

आखिर
मिटती नहीं क्यों
भूख उसकी

#२
वो शहर
जिसकी फूँक में
खो जाता
सूरज सारा

आखिर
थकती नहीं क्यों
साँस उसकी

No comments:

Post a Comment

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का