#१
वो आदमी
जिसकी जूठन पर
डकार ले ले
शहर सारा
आखिर
मिटती नहीं क्यों
भूख उसकी
#२
वो शहर
जिसकी फूँक में
खो जाता
सूरज सारा
आखिर
थकती नहीं क्यों
साँस उसकी
Thursday, July 19, 2018
Wednesday, July 18, 2018
फासले
फासले अब इतने हो चले हैं खुद से
अपनी ही आवाज़ सुनाई नहीं देती
वो आँखें जो घूर रही हैं आईने से
क्यों अब सवाल भी नहीं करतीं
अपनी ही आवाज़ सुनाई नहीं देती
वो आँखें जो घूर रही हैं आईने से
क्यों अब सवाल भी नहीं करतीं
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दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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क्यों है हक़ गौतम ऋषि को क्यों मुझे अभिशाप दें क्यों इन्द्र को सब देव पूजें क्यों मेरा अपमान हो क्यों तकूँ मैं राह रघु की क्यों मेरा ...
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खुदा ने पूछा मैं कौन "मैं" ने व्याख्या दी शास्त्र की, तर्क दिए विज्ञान के और खुदा हँसने लगा खुदा ने पूछा मैं कौन मैं शांत रहा ...
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तेरी कुर्बानी का रहेगा एहसान, ऐ दोस्त मैंने खोई कुछ ही दौलत, पर तूने यारी