सांझ
ढले मेरी आँखों में
तस्वीर
सी इक खिंच जाती हैअनदेखी अनजानी सी
टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं के जालों सी
खूब वो
मन को भाती है जब
इन्द्रधनुष
की सतरंगी पोशाकों मेंझिल मिल तारों की कुटिया से
वो झांक मुझे मुस्काती है
वसंत
पुष्प के अधरों सी
नदिया
के निर्झर निनाद सीभोर किरण की लाली सी
जब मन पर छा जाती है
मैं भाव
कुंज में खो जाता हूँ
यादों
के तारों से झंकृतगीत वो फिर दोहराता हूँ
गीत वो फिर दोहराता हूँ