Wednesday, November 18, 2015

विकल्प



ओछे की ओछे से टक्कर, बेबस है मतदाता
एक गाय पर स्वांग रचाता, एक है चारा खाता

Friday, November 6, 2015

धर्म


काटी ली द्रोण ने
उंगली एकलव्य की
दिया श्राप परशुराम ने
शिष्य कर्ण को

दोनों थे गुरुभक्त
दोनों बलशाली
थे दोनों योग्य
शायद अधिक
अर्जुन से भी

क्या धर्म था यही
या जीत जाति की
धर्म पर

Tuesday, November 3, 2015

तस्वीर


सांझ ढले मेरी आँखों में
तस्वीर सी इक खिंच जाती है
अनदेखी अनजानी सी
टेढ़ी मेढ़ी रेखाओं के जालों सी

खूब वो मन को भाती है जब
इन्द्रधनुष की सतरंगी पोशाकों में
झिल मिल तारों की कुटिया से
वो झांक मुझे मुस्काती है

वसंत पुष्प के अधरों सी
नदिया के निर्झर निनाद सी
भोर किरण की लाली सी
जब मन पर छा जाती है

मैं भाव कुंज में खो जाता हूँ
स्मृति के तारों से झंकृत
गीत वो फिर दोहराता हूँ
गीत वो फिर दोहराता हूँ

(२९ वर्ष पुरानी रचना (१९८५)

Monday, November 2, 2015

भिखारी



भिखारी
ढीठ
माँग रहा था
एक रुपया
वो भी
मंत्री जी से
दुलत्ती खाई
था इसी लायक
भिखारी

मंत्री जी
ढीठ
फिर आयेंगे
माँगने वोट
करेंगे वही सलूक
हम भी
जो करता है
एक भिखारी
दुसरे भिखारी
के साथ

Sunday, November 1, 2015

गिद्ध

 
 
गिद्ध
इंतज़ार में
इंसान के
मरने का
नहीं खाएगा
जब तक
ज़िंदा है वो
 
इंसान
बेसब्र
हर वक़्त
दबोचता
मारता
खाता
इंसानियत को

कार्यक्रम

और भाइयो बहनो
स्वागत कीजिये
तालियों से ज़ोरदार

अगले कलाकार
जिनके लिए
बेसब्र हैं आप

मत जाइए आप
इनकी कद काठी
या उम्र पर

देख लिये थे
पालने में ही
इनके पाँव

इनके पापा ने
फिर तेरह वर्ष
किया कड़ा श्रम

अब निखरी है
प्रतिभा इनकी
खरे सोने जैसी

तो भाइयो और बहनो
बाँध लीजिये अपनी
कुर्सी की पेटी

लीजिये गहरी साँसे
झपक लीजिये
अपनी पलकें

आ रहे हैं
अगले कलाकार
विकास

तीन, दो
और, और, और
एक

अरे यह क्या
कहाँ है
विकास

विकास के पापा
भेजिये न
मंच पर उसे

क्या बात है
विकास इतना
डरा क्यों है

क्षमा करें
भाइयो
और बहनो

विकास
ढ़ीठ, मनमाना 
जिद्दी हो गया है

नहीं आएगा
हमारे साथ
मंच पर

ऐतराज़ है
उसे मेरे आपके
खाकी निकर पर

बौरा गया है
यह नहीं जानता
हम कौन हैं

हमारा इतिहास
संस्कार
संस्कृति

बिक गया है
शायद यह भी
दुश्मन के हाथों

मूढ़
गद्दार
विकास

चलता रहेगा
यह कार्यक्रम
विकास के बिना

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का