Monday, March 30, 2015

मित्र

मित्र रहे मित्र तो वक़्त की मज़ाल क्या
शत्रु बने मित्र तो वक़्त से मलाल क्या

स्वर्ण

खुश हैं वो हो जाऊँगा ख़ाक मैं जल कर
खुश हूँ मैं निखरूँगा आग में तप कर

Saturday, March 7, 2015

रहना है परे

मैं पृथ्वी
मुझे रहना है परे उनसे
जो पचाना चाहते हैं मुझे
और जो बचाना चाहते है

मैं धर्म
मुझे रहना है परे उनसे
जो पचाना चाहते हैं मुझे
और जो बचाना चाहते है

मैं नारी
मुझे रहना है परे उनसे
जो पचाना चाहते हैं मुझे
और जो बचाना चाहते है

मैं ईमान
मुझे रहना है परे उनसे
जो पचाना चाहते हैं मुझे
और जो बचाना चाहते है

दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का