Friday, December 12, 2014

धर्म गरीब का

#१
वखत मिले दो रोटी, फ़कत एक हो चादर
नहीं फर्क फिर पंडित, क़ाज़ी या हो फादर

#२
कुरान पढ़ूँ मैं जपूँ पुराण
भजन भजूँ दूँ रोज़ अजान
गर ढके बदन हो जठर शांत
रब धर्म वही जो दे सम्मान

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दस्तक

दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का