#१
वखत मिले दो रोटी, फ़कत एक हो चादर
नहीं फर्क फिर पंडित, क़ाज़ी या हो फादर
#२
कुरान पढ़ूँ मैं जपूँ पुराण
भजन भजूँ दूँ रोज़ अजान
गर ढके बदन हो जठर शांत
रब धर्म वही जो दे सम्मान
वखत मिले दो रोटी, फ़कत एक हो चादर
नहीं फर्क फिर पंडित, क़ाज़ी या हो फादर
#२
कुरान पढ़ूँ मैं जपूँ पुराण
भजन भजूँ दूँ रोज़ अजान
गर ढके बदन हो जठर शांत
रब धर्म वही जो दे सम्मान
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