गिर रहा था आदमी
ना रुका वह ना थमा
गिर चुका था आदमी
Monday, December 15, 2014
Sunday, December 14, 2014
Friday, December 12, 2014
धर्म गरीब का
#१
वखत मिले दो रोटी, फ़कत एक हो चादर
नहीं फर्क फिर पंडित, क़ाज़ी या हो फादर
#२
कुरान पढ़ूँ मैं जपूँ पुराण
भजन भजूँ दूँ रोज़ अजान
गर ढके बदन हो जठर शांत
रब धर्म वही जो दे सम्मान
वखत मिले दो रोटी, फ़कत एक हो चादर
नहीं फर्क फिर पंडित, क़ाज़ी या हो फादर
#२
कुरान पढ़ूँ मैं जपूँ पुराण
भजन भजूँ दूँ रोज़ अजान
गर ढके बदन हो जठर शांत
रब धर्म वही जो दे सम्मान
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दस्तक
दस्तक देता रहता है कि सुन सके अपनी ही दस्तक "मैं" मैं को शक है अपने होने पर मैं को भय है अपने न होने का
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क्यों है हक़ गौतम ऋषि को क्यों मुझे अभिशाप दें क्यों इन्द्र को सब देव पूजें क्यों मेरा अपमान हो क्यों तकूँ मैं राह रघु की क्यों मेरा ...
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खुदा ने पूछा मैं कौन "मैं" ने व्याख्या दी शास्त्र की, तर्क दिए विज्ञान के और खुदा हँसने लगा खुदा ने पूछा मैं कौन मैं शांत रहा ...
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तेरी कुर्बानी का रहेगा एहसान, ऐ दोस्त मैंने खोई कुछ ही दौलत, पर तूने यारी